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देवी प्रसन्न होती है !
आप तो महात्मा हैं, आपकी शक्ति तो प्रजा के कल्याण के लिए ही होगी!' 'तुम्हारी बात योग्य है, विचारणीय है। हम इस बारे में उचित विचारविनिमय करके योग्य निर्णय लेंगे।'
वह आदमी प्रणाम करके चला गया। देवेन्द्रसूरिजी ने सोमचंद्र मुनि के सामने देखा। सोमचन्द्र मुनि ने कहा :
'इस महानुभाव की बात मुझे तो बहुत ही पसन्द आई। यदि गुरुदेव इज़ाज़त दें... तो हम दोनों चलें गौड़ देश की यात्रा के लिए!' ___ 'मेरे मन में जाने की इच्छा हो रही है | जाने से कुछ न कुछ तो प्राप्त होगा ही! चलें, गुरुदेव के चरणों में निवेदन करें!'
दोनों महात्मा गुरुदेव के पास गये | सारी बात कही। साथ ही विनम्र शब्दों में गौड़ देश में जाने के लिए अनुमति मांगी। गुरुदेव ने अनुमति भी दी और आशीर्वाद भी!
० ० ० देवेन्द्रसूरिजी और सोमचन्द्र मुनि ने पाटन से प्रस्थान किया। सभी शकुन श्रेष्ठ हो रहे थे। सोमचन्द्र मुनि ने कहा : 'सूरिदेव, शकुन तो खूब अच्छे हो रहे हैं । अवश्य हमारी कार्यसिद्धि होगी!' 'सही बात है तुम्हारी... महान् कार्य की सिद्धि होनी चाहिए।'
वे विहार करते हुए, एक दिन शाम के समय खेरालु' नामक गाँव (वर्तमान में तारंगा के निकट) में पहुँचे। रात बिताने के लिए उपाश्रय में जाकर रुके।
शाम का प्रतिक्रमण करने की तैयारी कर रहे थे। इतने में उपाश्रय के द्वार पर एक वृद्ध साधु आ पहुंचे। - पूरे छह फीट की ऊँचाई! - भव्य शरीर... पर बुढापे का असर दिखायी दे रहा था। - आँखों में अपूर्व तेज और सुन्दर-मोहक चेहरा । आते ही उन्होंने पूछा : 'महात्मा, क्या मैं यहाँ रातभर रुक सकता हूँ!' ‘पधारिये... महात्मन्! आप हमारे साथ यहाँ पर रात बिता सकेंगे! आपके साथ रहने से हमें आनन्द होगा।'
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