________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवी प्रसन्न होती है !
४. देवी प्रसन्न होती है!
पाटन में उन दिनों आचार्य श्री देवेन्द्रसूरिजी नाम के विद्वान आचार्यदेव बिराजमान थे। वे भी आचार्य श्री देवचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के शिष्यरत्न थे।
देवेन्द्रसूरिजी और सोमचन्द्र मुनि दोनों आत्मीय-मित्र थे। दोनों जब मिलते तब ज्ञानचर्चा तो करते हीं... साथ ही साथ...संघ-शासन एवं विभिन्न समस्याओं के बारे में भी चर्चा करते...। विचारों का विनिमय करते। एक-दूजे के मन की बातें भी करते । ज्ञानगोष्ठि दोनों का मनपसन्द विषय था और दोनों विद्वान थे। महान् थे।
- देवेन्द्रसूरिजी को अपने पद का अभिमान नहीं था ! - सोमचन्द्र मुनि को अपने ज्ञान का गर्व नहीं था !
अभिमान हो...गर्व हो तो मैत्री टिक नहीं सकती ! अभिमान न हो... गर्व का गरूर न हो... तो ही प्रेम बना रह सकता है !
००० एक दिन की बात है।
आचार्य श्री देवेन्द्रसूरिजी और सोमचन्द्र मुनि, उपाश्रय में बैठे हुए थे। ज्ञानचर्या का दौर चल रहा था। इतने में वहाँ पर एक आदमी आया। उसने दोनों महापुरुषों की वंदना की। विनयपूर्वक उनके सामने बैठकर अपना परिचय देते हुए उसने कहा : ____ 'मैं वैसे रहनेवाला तो पाटन का ही हूँ। पर मुझे परिभ्रमण का शौक है ! भारत के कई प्रदेशों में मैं घूमा हूँ। घुमक्कड़ी मेरा स्वभाव है। जहाँ कुछ नया दिखता है... नया सुनता हूँ... चला जाता हूँ...। पाटन अभी वापस लौटा तो मैंने आप दोनों के ज्ञान की... आप दोनों के गुणों की काफी प्रशंसा सुनी । इसलिए आपके दर्शन करने हेतु और आप से कुछ निवेदन करने हेतु चला आया।'
'कहिए, क्या कहना चाहते हो ? जो भी कहना हो बिना संकोच से कहिए।' आचार्य श्री देवेन्द्रसूरिजी ने कहा।
'महाराज, आप दोनों गौड़ देश में जाइये | गौड़ देश में आजकल तरहतरह के मांत्रिक हैं, मंत्रविद हैं, तांत्रिक हैं, तंत्रविद हैं! अनेक दिव्य शक्ति के धनी महापुरुष हैं। वहाँ आप पधारिये।
For Private And Personal Use Only