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पाँच प्रसंग
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२४. पाँच प्रसंग
गाँव का नाम था वटादरा। काना सेठ उस गाँव के बड़े व्यापारी थे।
आचार्यदेव हेमचन्द्रसूरिजी के परिचय से उनके दिल में 'धर्म' का जन्म हुआ था।
काना सेठ ने हजारों रुपये खर्च करके एक सुन्दर सा जिन मंदिर बनवाया। नयनरम्य जिनमूर्ति का निर्माण करवाया। परन्तु जब तक मूर्ति का अंजनविधि न हो तब तक मंदिरजी में प्रतिष्ठा करवाना संभव नहीं। पाटन में बहुत बड़ा महोत्सव था ।
गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी अनेक प्रतिमाओं का अंजन करनेवाले थे। ये समाचार वटादरा में काना सेठ को मिले । काना सेठ भगवान की मूर्ति को लेकर पाटन पहुँचे। ___ पाटन जाकर उन्होंने मूर्ति को मुख्य मंदिर में रखी... जहाँ अंजन की विधि चल रही थी।
काना सेठ, अंजन के लिए आवश्यक सामग्री लेने के लिए बाजार में गये । इधर राजा कुमारपाल उसी समय मंदिर में प्रविष्ट हुए। ___ मंदिर के दरवाजे पर राजा के अंगरक्षक तैनात हो गये। इतने में काना सेठ बाजार से सामग्री लेकर आये। राजा के अंगरक्षकों ने उन्हें भीतर जाने से रोका | काना सेठ ने कहा :
'मुझे मंदिर के अंदर जाने दो। मेरे भगवान की मूर्ति मंदिर में है... और मुझे गुरुदेव से उसका अंजन करवाना है।'
'इस वक्त महाराजा अन्दर हैं... इसलिए तुम अंदर नहीं जा सकते।' 'अरे भैया, मैं वटादरा से आया हूँ... अंजन करने का मुहूर्त यदि बीत गया तो मेरा कार्य लटक जाएगा... मेहरबानी करके मुझे भीतर जाने दो...।'
सैनिकों ने कहा : 'सेठ... समझते क्यों नहीं? एक बार कह दिया कि अभी मंदिर में नहीं जाया जा सकता।'
सेठ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा : 'गुरुदेव मुझे पहचानते हैं... उनकी सेवा में इतना ही निवेदन कर दो कि वटादरा से काना श्रावक आया है।'
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