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डायनों को मात दी
१११ 'गुरुदेव, आपने मेरे परिवार पर परम उपकार किया है। यमराज के चंगुल में से मेरे पुत्र को वापस ला दिया है। जनम-जनम तक आपका यह उपकार मैं नहीं भुला सकूँगी।'
आचार्यदेव ने भीगे-भीगे स्वर में कहा : 'माताजी, मैं आपका उपकार कहाँ भूला हूँ? तुमने नन्हें चंगदेव को अपनी गोदी में बिठाकर प्यार से खिलाया है, स्नेह का अमृत पिलाया है। वे दिन आज भी मुझे याद हैं। वे दिन भूले नहीं भुलाते । महामंत्री उदयन तो मेरे लिए पिता तुल्य थे।'
सर्वज्ञ जैसे सूरिदेव के श्रीमुख से ये शब्द सुनकर आम्रभट्ट और उसकी पत्नी तो गद्गद् हो उठे | माता पद्मावती ने आचार्यदेव के चरणों में मस्तक झुकाया। ने भावविभोर हो उठी थी।
आचार्यदेव ने कहा : 'माताजी, हम आज ही... अभी इस वक्त पाटन के लिए प्रस्थान करेंगे। अब तुम सब निश्चित रहना। भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की अचिंत्य कृपा तुम सब की रक्षा करेगी।'
राजा कुमारपाल को मालूम नहीं था कि आचार्यदेव पाटन से विहार कर के कहाँ और क्यों गये है? जब आचार्यदेव वापस पाटन पधारे तब कुमारपाल वंदन करने के लिए उपाश्रय में आये। वंदना कर के पूछा : __'गुरुदेव, आप अचानक ही विहार कर के पधार गये? मुझे इत्तिला भी नहीं दी।'
भरुच से माता पद्मावती का संदेश आया था। आम्रभट्ट को दैवी उपद्रव ने परेशान कर रखा था। तुरन्त ही पहुँचना पड़े वैसी आपात स्थिति थी। इसलिए आकाशमार्ग से भरुच जाना पड़ा।' __ शुरू से आखिर तक का किस्सा राजा को सुनाया। कुमारपाल के विस्मय की सीमा नहीं थी।
राजा ने यशश्चन्द्र मुनि के दर्शन किये। टकटकी लगाए उस मंत्रसिद्ध मुनि को निहारता रहा। ___ गुरुदेव के प्रति राजा के दिल में भक्ति भाव का ज्वार उठा था । ऐसा ज्वार जो कभी उतरनेवाला या अटकनेवाला नहीं था। ऐसे प्रतापी और प्रभावी
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