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चंगदेव प्राप्त होगा। स्वप्न में तूने वह रत्न मुझे दिया है... अर्थात् तू अपना पुत्र मुझे देगी। वह तेरा पुत्र जिनशासन का महान् आचार्य बनेगा। जिनशासन की शान बढ़ाएगा। ___ पाहिनी खुश-खुश हो उठी। उसे गुरुदेव पर श्रद्धा थी। वह समझती थी... 'सच्चा सुख साधु जीवन में ही है।' इसलिए उसका होनेवाला होनहार बेटा भविष्य में महान आचार्य बनेगा... इस भविष्यकथन ने उसे भावविभोर बना डाला। __उसने तुरन्त ही अपनी साड़ी के छौर में गांठ बाँध ली। गांठ लगाकर उसने जैसे स्वप्न को बाँध लिया।
गुरुदेव को भावपूर्वक वंदना करके वह अपने घर पर आई।
उसी रात उसके पेट में आकाश में से कोई उत्तम जीव अवतरित हुआ, जैसे कि किसी सुन्दर से सरोवर में कोई राजहंस उतर आया हो!
पाहिनी गर्भवती हुई। उसका सौन्दर्य दिन-प्रतिदिन निखरने लगा।
वह रोती नहीं है... आँखों में काज़ल नहीं लगाती है... वह न तो दौड़ती है... न तेजी से कदम उठाती है। वह सम्हलकर बैठती है... सम्हलकर खड़ी होती है...| ज्यादा खट्टा-खारा नहीं खाती है...। न ज्यादा तीखा-चटपटा या ठंढ़ा-गरम खाती है ! __'मेरे गर्भ में रहे हुए मेरे पुत्र को किसी भी प्रकार की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए... उसके निर्मित हो रहे देहपिंड में कोई विकलता नहीं रहनी चाहिए।' इसलिए वह ये सारी सावधानियाँ बरतती है। उसे रोज़ाना जिनमंदिर जाने की और परमात्मा की पूजा करने की इच्छा होती है। वह नित्य परमात्मा की पूजा करती है। उसे प्रतिदिन गरीबों को दान देने की इच्छा होती है... वह दिल खोलकर दान देती है।
उसे प्रतिदिन अतिथि को भोजन करवाने की इच्छा होती है... और वह हररोज जो भी अतिथि आये उसे भावपूर्वक खाना खिलाती है।
वह सब के साथ मीठा-मीठा - मधुर बोलती है। वह अपने पति चाचग के साथ तत्त्वज्ञान की चर्चा करती है। उसे ज्ञानी पुरुषों की बातें सुननी अच्छी लगती हैं...।
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