________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कलिकाल सर्वज्ञ
१. चंगदेव
आज से नौ सौ बरस पुरानी यह कहानी है।
यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है... यह ऐतिहासिक कहानी है। इतिहास के अनखुले-अधखुले पन्नों पर सुवर्णाक्षर में लिखी गई है, यह कहानी!
गुजरात में 'धंधुका' नाम का नगर था, जो आज भी है! उस नगर में चाचग नामक सेठ रहते थे। वे गुणवान और धार्मिक थे। उनकी पत्नी थी पाहिनी देवी। पाहिनी देवी स्वयं गुणवती-शीलवती सन्नारी थी। उसके दिल में जैन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा थी साथ ही... श्रद्धापूर्ण समर्पण भी था।
एक दिन रात के चौथे पहर में पाहिनी ने स्वप्न देखा। उसे दो दिव्य हाथ दिखाई दिये। दिव्य हाथों में दिव्य रत्न था। _ 'यह चिंतामणि रत्न है, तू ग्रहण कर !' कोई दिव्य आवाज़ उभरी | पाहिनी ने चिंतामणि रत्न ग्रहण किया।
वह रत्न लेकर अपने उपकारी गुरुदेव आचार्य श्रीदेवचन्द्रसूरिजी के पास जाती है। 'गुरुदेव, आप यह रत्न ग्रहण कीजिए।' वह रत्न गुरुदेव को अर्पण कर देती है...। उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलछला उठे।
स्वप्न पूरा हो जाता है... वह सहसा जागती है... पलंग पर बैठकर श्री नवकार मंत्र का स्मरण करती है...स्वप्न को याद करती है... वह सोचती है :
'गुरुदेव नगर में पधारे हुए हैं... मैं उन्हें मेरे स्वप्न की बात करूँ!
उसने स्नान किया । सुन्दर वस्त्र पहने। वह गुरुदेव श्रीदेवचन्द्रसूरिजी के पास गई।
पाहिनी ने गुरुदेव को वंदना करके विनयपूर्वक अपने स्वप्न की बात कही। गुरुदेव ने कहा : 'पाहिनी, तूने बहुत ही सुन्दर स्वप्न देखा है। तुझे श्रेष्ठ रत्न जैसा पुत्र
For Private And Personal Use Only