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डायनों को मात दी
१०६ 'अरे महाराज, डर नामक चीज मैनें देखी नहीं है... तुम कहोगे तो कल भूत से भी भिड़ जाऊँगा | मैं राक्षस से डरता नहीं... कि पिशाच से घबराता नहीं... तुम तो निश्चिंत होकर मुझे आज्ञा करते रहना...'
कहते हुए रणमल ने अपना हाथ अपनी तलवार सी मूंछों पर फिराया । यशश्चन्द्र के चेहरे पर स्मित बिखरा । नगर के किले का दरवाजा आया।
चौकीदार ने गुरुदेव को देखा। वह गुरुदेव के पैरों में गिरा। यशश्चन्द्र ने इशारे से दरवाजा खोलने के लिए कहा।
चौकीदार ने मुख्य दरवाजे की बड़ी खिड़की खोली। तीनों उसमें से बाहर निकल गये। चौकीदार ने खिड़की बंद की।
बाहर आते ही यशश्चन्द्र ने एक भयानक दृश्य देखा।
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