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आकाशमार्ग से भरुच में
१०५ पाटन आकर उन्होंने आचार्यदेव के चरणों में वंदना कर के सारी बात बताई और स्थिति की नजाकत से अवगत करवाया।
आचार्यदेव ने सोचा। मामले की गंभीरता पर विचार किया। भरुच जाने का निर्णय किया।
आचार्यदेव ने, अपने शिष्य यशश्चन्द्र को साथ लेकर आकाशमार्ग से प्रयाण किया। कुछ ही समय में वे भरुच जा पहुंचे।
सीधे ही वे आम्रभट्ट की हवेली पर गये। आम्रभट्ट बेहोश पड़े हुए थे। माता पद्मावती ने आचार्यदेव का स्वागत किया। उन्हें पाट पर बिराजमान होने की प्रार्थना की। आचार्यदेव ने ध्यान लगाया। उन्होंने योगबल के सहारे जान लिया कि यह दैवी उपद्रव है। ___ ध्यान पूर्ण करके उन्होंने यशश्चन्द्र से कहा : यह सारा उपद्रव व्यंतर देवियों का है। वे मिथ्यादृष्टि हैं। दण्डनायक ने यह मंदिर निर्माण किया... इससे वे क्रुद्ध हैं।
यशश्चन्द्र मंत्रविद्या में पारंगत थे। वे गुरुदेव के इशारे से ही सारा मामला समझ गये।
उन्होंने आम्रभट्ट की माता से कहा :
'आधी रात के समय फल-फूल नैवेद्य वगैरह बलि-पूजा का सामान देकर किसी धीर-वीर पुरुष को हमारे पास उपाश्रय पर भेजना। हम अभी उपाश्रय पर जा रहे हैं।'
आम्रभट्ट की माता ने विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया। गुरुदेव उपाश्रय में पधार गये।
मध्यरात्रि के समय सूचना के मुताबिक बलि-पूजा की थाली सजाकर रणमल नामक हट्टा-कट्टा और निडर आदमी उपाश्रय आ पहुंचा।
गुरुदेव ने यशश्चन्द्र से कहा : 'हमें यहाँ से सीधे ही सेंधवा देवी के मंदिर की ओर चलना है।' रास्ते में क्या करना है... यह बात यशश्चन्द्र को समझा दी।
यशश्चन्द्र ने उस रणमल से कहा : 'मेरे साथ चलना। तनिक भी घबराना मत। निर्भीक होकर चल सकेगा न?'
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