________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
ड़ायनों को मात दी
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०७
१८. डायनों को मात दी
बड़ी-बड़ी चिड़ियों का टोला ... और अत्यन्त कर्कश आवाज! गुरुदेव आदि तीनों को उस टोले ने घेर लिया । तुरन्त ही यशश्चन्द्र मुनि ने रणमल से कहा : 'बलि-बाकुले (ऊड़द के दाने) उछाल ।' रणमल ने दो मुट्ठी भरकर बलि - बाकुले आकाश में उछाले । चिड़ियों का टोला अदृश्य हो गया ।
वे आगे बढ़े। कुछ दूर चले और हूप ... हूप करते हुए पीले मुँह के बंदरों का हुजूम सामने मिला। बंदर उन्हें घेर ले इससे पहले तो यशश्चन्द्र ने रणमल से कहा :
'रणमल, मेरे हाथ में चावल के दाने दे ।' रणमल ने चावल के दाने दिये । यशश्चन्द्र ने उन चावल के दानों को मंत्रित कर बंदरों की ओर फेंके और सभी बंदर वहाँ से आननफानन में नौ-दो ग्यारह हो गये ।
अब वे सैंधवी देवी के मंदिर की ओर तीव्र गति से चलने लगे। मंदिर कुछ ही दूर रहा कि इतने में बड़े-बड़े यमराज के जैसे भयानक बिल्लों का समूह सामने से आता हुआ दिखाई दिया । यशश्चन्द्र ने रणमल से कहा :
‘रणमल, लाल रंग के फूल इन बिल्लों पर फेंक ।' रणमल ने फूल फेंके और बिल्ले जैसे हवा में गायब हो गये ।
देवी के मंदिर के सामने आकर तीनों खड़े रह गये । आचार्यदेव ने देवी के मंदिर के दरवाजे के समक्ष खड़े रहते हुए सूरिमंत्र का ध्यान किया।
यशश्चन्द्र मुनि ने ऊँची आवाज में कहा :
'ओ अज्ञानी देवी, बड़े-बड़े असुर भी जिनके कदमों की धूलि अपने सिर पर रखते हैं, वैसे इन हेमचन्द्रसूरि का स्वागत कर । तेरा महान् पुण्योदय है कि ऐसे लोकोत्तर महापुरुष तेरे अतिथि हुए हैं । '
इतने में अदृश्य रही हुई देवी का अट्टहास सुनाई दिया । धरती काँप उठी । मंदिर थरथरा उठा। परन्तु गुरुशिष्य का रोंया भी फड़का नहीं । रणमल भी चट्टान की भाँति अडिग खड़ा था ।
For Private And Personal Use Only
देवी प्रगट हुई। भयंकर रौद्र रूप किया। लंबी-लंबी जीभ लपलपाती हुई, आचार्यदेव के समक्ष नाचने-कूदने लगी ।