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आकाशमार्ग से भरुच में
७. आकाशमार्ग से भरुच
मंत्री वाग्भट्ट के छोटे भाई थे आम्रभट्ट! राजा कुमारपाल के दिल में जितना स्नेह वाग्भट्ट के लिए था उतना ही अपनत्व आम्रभट्ट के लिए था। आम्रभट्ट लाटप्रदेश (भरुच से सूरत तक का इलाका) के दंडनायक थे।
लाटप्रदेश के लोगों के योगक्षेम की जिम्मेदारी दंडनायक आम्रभट्ट के सिर पर थी। वैसे तो आम्रभट्ट अधिकतर पाटण में ही रहते थे। कुछ ही दिन पूर्व महामंत्री उदयन का स्वर्गवास हुआ था। पिता के अवसान के कारण दोनों पुत्र वाग्भट्ट और आम्रभट्ट व्यथित थे।
उन्हीं दिनों भरुच के कुछ श्रावक पाटन आये और उन्होंने दंडनायक आम्रभट्ट से मिलकर निवेदन किया :
'श्रीमान्, भरुच का 'शकुनिका विहार' नामक जिनमंदिर जहाँ पर श्री मुनिसुव्रतस्वामी बिराजमान हैं... वह अत्यंत जीर्णशीर्ण हो गया है... उसका उद्धार करना अति आवश्यक है।'
आम्रभट्ट ने कहा : 'महानुभाव, आप निश्चिंत रहिए | बहुत जल्द उस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया जाएगा.'
आम्रभट्ट ने अपने बड़े भाई वाग्भट्ट से परामर्श किया। 'बड़े भैया, पिताजी की तमन्ना थी समड़ी विहार का जीर्णोद्धार करवाने की। शत्रुजय गिरिराज के ऊपर स्थित भगवान आदिनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर आपने पिताजी की एक मनोकामना पूरी की, शकुनिका विहार का जीर्णोद्धार करवाने की इच्छा पूरी करने की आज्ञा मुझे दीजिए... यह पुण्योपार्जन करने का अवसर मुझे प्रदान करें।'
बड़े भाई ने छोटे भाई को इजाजत दी। राजा कुमारपाल ने भी अनुमति प्रदान की।
आम्रभट्ट का हृदय हर्ष से नाच उठा । वे अपनी धर्मपत्नी को साथ लेकर आये | भरुच में उन्होंने निवास किया। शिल्पियों को बुलाया... उनसे कहा : यह मंदिर तोड़कर इसी जगह पर नया आलीशान जिनालय बनाना है... अति शीघ्र ही कार्य प्रारंभ करना होगा।'
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