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आकाशमार्ग से भरुच में पार्श्वनाथ भगवान की उस प्रतिमा को गुरुदेव श्रीहेमचन्द्रसूरिजी के वरद हस्त से प्रतिष्ठापित किया गया।
० ० ० एक दिन राजा ने गुरुदेव से कहा : 'गुरुदेव, मेरे मन में एक विचार बार-बार कौंध रहा है। खंभात (गुजरात का तत्कालीन बड़ा शहर) में आप से मेरा मिलना हुआ । आपने मेरे प्राणों की रक्षा की। खंभात में आपने मुझे प्रारंभिक व्रत दिये, नियम दिये। इन सबकी स्मृति में एक मंदिर का निर्माण खंभात में करवाना चाहता हूँ।'
'कुमारपाल, खंभात में अलिंग नाम का मुहल्ला है। वहाँ का जिनालय जीर्णशीर्ण हो चुका है... उसका जीर्णोद्धार करवाने की सख्त आवश्यकता है।' __'जैसी आज्ञा, गुरूदेव । वह कार्य शीघ्र ही संपन्न होगा और उसमें रत्नमयी प्रतिमा की स्थापना करवाऊँगा।'
राजा का निर्देश पाकर वाग्भट्ट मंत्री खंभात पहुँचे । अलिंग के मंदिर को देखा। अति जीर्ण मंदिर का उद्धार करवाने के बदले नया ही मंदिर बनवाने का निर्णय किया। ___ पाटन में राजा कुमारपाल को समाचार भिजवाये । राजा ने सहमति दे दी। मंदिर का निर्माण कार्य तीव्र गति से चालू हो गया। दूसरी ओर मूल्यवान रत्नमयी परमात्मा महावीर स्वामी की प्रतिमा तैयार करवा दी गई। __पूज्य आचार्य भगवंत खंभात पधारे। राजा कुमारपाल भी अपने विशाल राजपरिवार के साथ खंभात आ पहुँचा । उत्सव-महोत्सव के शानदार आयोजन के साथ प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न हुआ। जैन धर्म की शान बढ़ी... लोगों के मन में जैनधर्म के प्रति आदर अहोभाग बढ़ने लगा।
० ० ० राजा कुमारपाल ने जितने भी जिनमंदिर निर्मित किये... उन सब में नियमित पुष्प पूजा होती रहे इसके लिए हर एक मंदिर को एक-एक बगीचा भेंट किया। उस बगीचे में होनेवाले विविध रंग, खुशबूवाले फूल परमात्मा के चरणों में अर्पित होने लगे। ___ कुमारपाल ने अपनी हुकूमत के अठारह प्रदेशों में देवविमान से भव्य एवं रमणीय जिनमंदिर बनवाये और जैनधर्म के प्रसार-प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
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