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जिनमंदिरों का निर्माण राजा कुमारपाल को वाग्भट्ट के प्रति गहरा विश्वास था। अक्सर तो वाग्भट्ट कुमारपाल के अंगरक्षक के रुप में साथ ही रहते थे। ___ जैसे उदयन मंत्री परमात्मा जिनेश्वर देव के भक्त थे, वैसे ही वाग्भट्ट भी परमात्मा के उपासक थे। वाग्भट्ट ने स्वयं एक सुन्दर जिनालय निर्मित किया था। छोटे पर कलात्मक उस जिनालय में वाग्भट्ट ने चन्द्रकान्तमणि में से निर्मित श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति बिराजमान की थी। नेपाल के राजा ने चन्द्रकान्तमणि वाग्भट्ट को भेंट के रूप में भेजा था । वाग्भट्ट मंत्री ने उस मणि में से मूर्ति का सर्जन किया था।
एक दिन वाग्भट्ट ने राजा कुमारपाल से कहा : 'महाराजा, आपको जब समय की सुविधा हो तब मेरे मंदिर पर पधारने की कृपा करें और भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन करें।'
राजा प्रसन्न हो उठा। उसने कहा : 'अवश्य आऊँगा... कल ही आ जाऊँगा।'
दूसरे दिन देवपूजा के विशुद्ध वस्त्र पहनकर, पूजा की सामग्री साथ में लेकर राजा रथ में बैठा और वाग्भट्ट की हवेली पर आये । वाग्भट्ट उन्हें मंदिर में ले गया। कुमारपाल ने दर्शन किये... पूजा की। उन्हें प्रतिमा बहुत अच्छी लगी। उनका मन प्रतिमा में रम गया। दोनों हाथों में प्रतिमा को लेकर अपलक उसे निहारते रहे।
राजा को मूर्ति पसंद आ गई। उन्होंने वाग्भट्ट के सामने देखा : 'वाग्भट्ट ।' 'जी, महाराजा।' 'यह मूर्ति मुझे बेहद पसंद आ गई है।' 'जी महाराजा।'
'यह प्रतिमा तू मुझे दे दे। मैं एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाऊँगा। उस मंदिर में इस मूर्ति की प्रतिष्ठा करूँगा।'
'महाराजा, इससे बढ़कर मेरे लिए और खुशी क्या होगी? आप प्रसन्न मन से इस मूर्ति को स्वीकार कीजिए। मुझे भी खुशी होगी।'
राजा ने 'कुमार विहार' नामक शानदार जिनमंदिर बनवाया और उस में
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