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जिंदगी इम्तिहान लेती है
६१ अशांत बनता है। प्रिय आत्मन्! आज मैंने नई ही बात तुझे लिखी है। तेरे प्रश्न के अनुसन्धान में जो मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ्य, इन भावों पर लिखना है, सो आगे लिखूगा। लिखने का 'मूड' भी अब धीरे-धीरे आ रहा है। चिन्तन खूब चल रहा है। अभी कुछ समय सागर किनारे के रमणीय प्रदेश में आलादक वातावरण में व्यतीत हो रहा है।
तेरी कुशलता चाहता हूँ। १६-२-७७
- श्री प्रियदर्शन
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