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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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परन्तु 'प्रेम का स्वरूप क्या होना चाहिए ?' यह प्रश्न सुलझा नहीं । जिसको भी पूछा, अपनी कल्पना से उत्तर दिया। इससे संतोष नहीं हुआ..... कैसे होता संतोष? जिन्होंने प्रेम का स्वरूप पाया नहीं हो, वे कैसे दूसरों को संतुष्ट कर सकते हैं?
मुझे इस बात का भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि प्रकाण्ड विद्वान ऐसे आचार्यों ने भी 'प्रेम' के विषय में मौन ही धारण किया है! 'प्रेम का स्पष्ट स्वरूप उन्होंने समझाया नहीं। हाँ, एक योगीपुरुष आनंदघनजी ने परमात्मा की स्तवना में प्रेम, प्रीति का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया है। उन्होंने प्रेम को 'निरुपाधिक' बताया। सोपाधिक प्रेम, प्रेम नहीं है । 'निरुपाधिक' का अर्थ होता है कामनारहित । जिससे हमारा प्रेम हो, उससे कुछ पाने की कामना हमारे मन में नहीं होनी चाहिए ।
दूसरी बात उन्होंने यह कही कि 'रंजन धातुमिलाप' यानी प्रेम का अर्थ है धातुओं का मिलन | शारीरिक धातुओं के मिलन की बात यहाँ नहीं है, यहाँ 'धातु' शब्द का अर्थ 'विचार' ही करना उचित लगता है। यानी परस्पर के विचारों का मिलन प्रेम का दूसरा स्वरूप है। जिससे हमारा प्रेम हुआ, उनके विचारों के साथ हमारे विचारों का मैल बैठ जाये, विचारभेद नहीं रहें। उनके प्रेम का पात्र है, परमात्मा । परमात्मा से 'धातुमिलाप' कैसे हो? है न अटपटी यह बात ? मैं तो इतना समझ गया हूँ कि परमात्मा के आदेश और उपदेश ही हमारा जीवन बन जाये - वह धातुमिलाप ।
किसी एक पात्र को लक्ष्य बनाकर प्रेम की परिभाषा जब की जाती है, परिभाषा अपूर्ण ही रहेगी। हमें कोई भी पात्र सामने रखे बिना प्रेम का स्वरूप समझना होगा। उसी स्वरूप वाला प्रेम फिर अपने कोई भी पात्र के साथ कर सकें, निर्भय और निश्चिंत बनकर | प्रेम करने पर अथवा प्रेम हो जाने पर यदि कोई भयग्रंथी हमारे मन को भ्रान्त करती है, कोई चिन्ता यदि हमारे मन को चिंतित कर देती है, तो वह प्रेम नहीं कहा जा सकता। वह वासना ही है ।
तू शायद कहेगा: प्रेम के विषय में इतना चिन्तन क्यों करना चाहिए? क्या जीवन में प्रेमतत्व इतना अनिवार्य है ?
हाँ! जीवन में प्रेम आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है! बच्चा हो, तरुण हो, युवा हो या वृद्ध हो - जीवन की सभी अवस्थाओं में प्रेम चाहिए । स्त्री हो या पुरुष हो, भोगी हो या त्यागी हो, संत हो या शैतान हो - सब प्रेम चाहते हैं ! परंतु जो लोग प्रेम का स्वरूप नहीं जानते हैं, वे प्रेम की जगह वासनाओं में फँस जाते हैं । वासना को प्रेम मान लेते हैं ।
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