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जिंदगी इम्तिहान लेती है
२. परमात्मा का बार-बार दर्शन ३. परमात्मा का स्पर्शन ४. परमात्मा का गुणकीर्तन
ये चार बातें स्वाभाविक रूप से आ ही जाती हैं। परमात्मा ही नहीं, किसी भी व्यक्ति के प्रति प्रेममूलक श्रद्धा उत्पन्न होती है, तब ये चार बातें आएँगी ही! परमात्मश्रद्धा प्रीतिमूलक चाहिए | अरे, प्रीति के बिना श्रद्धा हो नहीं सकती।
कोई तुझे कहे कि 'मुझे आपके प्रति श्रद्धा है, परन्तु प्रेम नहीं है। 'तो तू क्या कहेगा? 'प्रेम के बिना श्रद्धा में शेष क्या रह जाता है?' प्रीति-प्रेम-स्नेह... का स्वरूप क्या मुझे समझाना पड़ेगा? अच्छा, समझाऊँगा, परंतु आज नहीं। अगले पत्र में लिखूगा।
परमात्मा की परम कृपा से मेरा स्वास्थ्य अब ठीक है। सहवर्ती मुनि वृंद कुशल हैं। तेरे पिताजी-माताजी... वगैरह को धर्मलाभ सूचित करना।
१६-६-७६
- प्रियदर्शन
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