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जिंदगी इम्तिहान लेती है ® उत्तरदायित्व या जिम्मेदारी का उद्भव करुणा में से होता है। ® समाधान को खोजनेवाला मन स्वस्थ, शांत एवं अनुद्धिग्न होना चाहिए। ® जब तक आत्मा कमों के पराधीन है, तब तक अनेक प्रश्न पैदा होंगे ही।
समस्याएँ बनी रहेंगी ही। @ निराशा में डूबा हुआ मन संकल्पशक्ति की दिव्य अनुभूति को उजागर नहीं
कर सकता है। ® प्रबल संकल्पशक्ति के सामने कोई भी समस्या बाधा बन नहीं सकती! ® श्रद्धा, शरणागति और समर्पण के द्वारा ही परमात्मतत्त्व का नैकट्य पाया
जा सकता है।
ONR
पत्र : ६
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ, तेरा पत्र पढ़कर प्रसन्नता का अनुभव किया। रोज अनेक पत्र आते हैं, पढ़ता हूँ और अनेक पत्र लिखता भी हूँ, परन्तु उतनी प्रसन्नता नहीं, उतना उल्लास नहीं, जो प्रसन्नता और उल्लास तेरे पत्र पढ़ने में और तुझे पत्र लिखने में अनुभव करता हूँ।
इस बार पत्र लिखने में विलम्ब हो गया। तू मेरे पत्र का कितना इन्तजार करता होगा... जानता हूँ, परंतु विलम्ब होना था, हो गया! मैं तेरी जिज्ञासा 'क्यों?'को अतृप्त नहीं रखूगा | मेरी आन्तरिक अभिरुचि-प्रवृत्ति नहीं है, निवृत्ति है। कभी-कभी प्रवृत्ति से... अधिक प्रवृत्ति से... भले वह शुभ प्रवृत्ति हो, मन विरक्त हो जाता है। जब विरक्ति आत्मा पर हावी हो जाती है, तब मौन हो जाता हूँ, शून्यता में चला जाता हूँ, फिर पढ़ना... और लिखना, कुछ भी नहीं होता। __परन्तु जब उत्तरदायित्व का विचार आता है, प्रवृत्ति का भाव प्रबल बन जाता है। प्रवृत्ति का प्रेरणास्रोत होता है मैत्री अथवा करुणा | मैत्री और करुणा ही तो उत्तरदायित्व का बोध कराती है। यदि किसी के पास जल है और वह व्यक्ति किसी तृषातुर अतिथि को जल देने से इनकार कर दे तथा उस प्यासे
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