________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
११
पास ममतामयी माता, स्नेहपूर्ण पिता... भाई... बहन इत्यादि स्वजन हैं, लाखों लड़के-लड़कियाँ स्वजन विहीन दशा में इधर-उधर भटक रहे हैं ! तुझे कितने अच्छे मित्र मिले हैं? करोड़ों मनुष्य ऐसे हैं, जिनको अच्छा मित्र नहीं मिला है और इसलिए वे बेचैन हैं! तुझे कितना मान-सम्मान मिल रहा है? करोड़ों मनुष्य ऐसे हैं जो लोगों की घृणा - तिरस्कार और निन्दा का शिकार बन रहे हैं ! तेरा शरीर कितना निरोगी है! जब कि विश्व में करोड़ों मनुष्य रुग्ण अवस्था में व्यथित हैं ? तेरे तन-मन की चिन्ता करने वाले कितने हैं? संसार में इतनी चिन्ता करने वाले कितने को मिले हैं? तूने कितनी अच्छी शिक्षा पाई है और शिक्षा प्राप्त करने के कितने अनुकूल संयोग प्राप्त हुए हैं ? दुनिया में देख, करोड़ों मनुष्य अशिक्षित हैं, करोड़ों को शिक्षा प्राप्त करने के साधन ही नहीं मिले हैं!
मैं यह किसलिए लिख रहा हूँ ? तू मेरी इन बातों पर गहराई में जाकर सोचें । तुझे जो कुछ अच्छा मिला है, उसका मूल्यांकन करे।
कितना-कितना मिला है हमें ? करोड़ों मनुष्यों को जो नहीं मिल पाया है, वह हमें मिल गया है! कैसे मिल गया? यह सब जो मिला है, क्या तेरे पुरुषार्थ से मिला है? क्या किसी की करुणा से, किसी के उपकार से, किसी के प्रेम से नहीं मिला? है, कद्रदानी उस करुणा की? है, मूल्यांकन उस उपकार का ? है, संवेदना उस प्रेम की ?
मुझे कभी-कभी यह विचार आता है कि जो मनुष्य प्रत्यक्ष करुणा करने वालों का और प्रत्यक्ष प्रेम करने वालों का भी मूल्यांकन नहीं कर सकता है, कद्रदानी नहीं कर सकता है... तो फिर परोक्ष रूप से करुणावंत परमात्मा का, परमोपकारी गुरुजनों का और प्रेमपूर्ण कल्याण मित्रों का मूल्यांकन कैसे कर सकता है? और यदि इस प्रकार मूल्यांकन नहीं करता है तो श्रद्धावान और ज्ञानवान कैसे बन सकता है ? श्रद्धा और ज्ञान के अभाव में वह सच्चरित्री कैसे बन सकता है? श्रद्धा, ज्ञान और सच्चरित्र के अभाव में वह आन्तरिक प्रसन्नता, आत्मिक आनंद... परमानंद कैसे पा सकता है? परन्तु अभी जाने दो इस बात को, कभी इस विषय पर विस्तार से लिखूँगा ।
इस पत्र में तो मैं तेरे चिंतित मन को... व्यथित हृदय को... ऐसा कुछ देना चाहता हूँ... कि जिससे तेरा भारी-भारी मन हल्कापन अनुभव करे, व्यथित हृदय की व्यथाएँ विदीर्ण हो जाये ! परन्तु यह कब हो सकेगा? जो मैं देना चाहता हूँ - तू उसको ग्रहण करेगा, तब ! मेरे प्रिय आत्मीयजन! मुझे पूर्ण विश्वास है कि तू मेरी भेंट का स्वीकार करेगा ही!
For Private And Personal Use Only