________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
२०६ @ स्वयं को हीन मानने-समझने की वृत्ति जैसे अच्छी नहीं है... वैसे ही अपने __ आप को महान समझने की गुरुताग्रंथि भी बड़ी खतरनाक होती है! ® मनुष्य का व्यक्तिगत जीवन सामाजिक जीवन से पूर्णतया अलिप्त या
अलग नहीं रह सकता है! @ सामाजिक प्रतिक्रियाओं का तब तक तो खयाल रखना ही होगा, जब तक
समाज के बीच में जीना है। ® जब पारलौकिक दृष्टि का ही अभाव है फिर मानसिक विचारधारा कलुषित
बनी रहे या विकृत बन जाये, इसमें ताज्जूबी क्या? ® मानसिक तनाव जब जरूरत से ज्यादा बढ़ते हैं, तब वे शरीर पर भी अपना
असर दिखाते हैं।
पत्र : ४९
प्रिय मुमुक्षु।
धर्मलाभ, _पत्र मिला, इतना विस्तृत पत्र प्रथम बार ही मिला । शान्ति से पढ़ा, तेरे पत्र के माध्यम से तेरी मानसिक स्थिति का भी अनुमान किया। स्थितप्रज्ञदशा से बहुत दूर-दूर रहा हुआ व्यक्ति ऐसी परिस्थिति में भय, भ्रान्ति और भ्रमणाओं में उलझ जाय, यह स्वाभाविक है। तेरी मानसिक तनावपूर्ण स्थिति 'नॉर्मल' हो जानी चाहिए। तुझे शीघ्र निर्भय हो जाना चाहिए | गुरुताग्रन्थि से मुक्त बन जाना चाहिए। ___ तेरा पत्र तो बाद में मिला, इससे पूर्व वह भाई... मेरे पास आया था, उसने तेरे विषय में बहुत सी बातें बतायी। तूने तो उसको मना कर दिया था... परन्तु तेरे प्रति उसको आत्मीयस्नेह है न! उसका दिल मेरे पास खुल ही गया और उसने सारी बातें कह दी। मैं सुनता रहा... सोचता रहा...| जो कुछ भी बना है, होना निश्चित था, मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। मुझे कैसे आश्चर्य होता? मेरी तो पहले से ही धारणा थी कि ऐसा परिणाम आयेगा। ___ व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन संपूर्णतया अलिप्त नहीं रह सकते। मनुष्य जैसे एक व्यक्ति है, वैसे वह एक सामाजिक प्राणी भी है। जब तक समाजसापेक्ष जीवन है, सामाजिक प्रतिक्रियाएँ जब तक मन-मस्तिष्क पर
For Private And Personal Use Only