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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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भ्रमणाओं में भटक रहा है। मेरी बात पर गंभीरता से सोचना। इतना स्वार्थी नहीं बनना... कि निःस्वार्थ मित्र का विश्वासघाती बने । अब भी रुक जा । प्रत्युपकार की तुमसे कोई अपेक्षा नहीं है... अपकार से निवृत्त हो जायेगा तो भी मुझे संतोष होगा ।
छोटी सी जिंदगी, क्या शान्ति से, समता से और सहिष्णुता से बसर नहीं हो सकती? परोपकार न हो सके तो, स्वान्तः सुखाय क्या नहीं जी सकते? परपीड़न में आनन्दित होना, महापाप है ।
तेरी कुशलता चाहता हूँ । परमात्मा के अचिन्त्य अनुग्रह से तुझे सद्बुद्धि मिले... यही मंगल कामना ।
नया अंजार (कच्छ)
३-६-८०
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- प्रियदर्शन