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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २. उनका यह भी आग्रह नहीं कि तू त्यागी ही बन जाये, यदि त्यागी नहीं बन सकता तो वैसा भोगी भी नहीं बनाना चाहते कि तेरी आत्मा दुर्गति में भटक जाए गृहस्थ जीवन में भी तू यथोचित त्याग और संयम के साथ जिए वैसा वे चाहते हैं। ३. वे तेरे विचारों से सहमत नहीं होते हैं - इसलिए उनके प्रति तिरस्कार करना उचित नहीं है। तेरे विचार ही सही हैं, ऐसा आग्रह रखना क्या उचित है? ४. यदि वैचारिक सहिष्णुता नहीं होगी जीवन में, तो किसी भी व्यक्ति के साथ तेरा स्नेह संबंध अखंड नहीं रह पाएगा। सुन्दरता के आकर्षण क्षणजीवी होते हैं, जीवन की यात्रा में जीवनसाथी सुन्दर होने मात्र से काम नहीं चलता। ज्ञानी, सहिष्णु, उदार और गंभीर होना भी जरूरी है। ज़्यादा क्या लिखू? पारिवारिक क्लेश शांत हो जाना चाहिए। सबके मन प्रसन्न और मैत्रीभाव से भरपूर हो जाने चाहिए। जीवमैत्री के बिना कोई भी धर्मक्रिया 'अमृत क्रिया' नहीं बन सकती है। सब जीवों के प्रति मैत्री की भावना दृढ़ बनानी चाहिए | उपकारी के प्रति तो 'प्रमोदभाव' भी होना चाहिए | सब जीवों के साथ मैत्रीभावना रखने वाला मनुष्य अपने उपकारी और हितकारी माता-पिता के प्रति द्वेष, घृणा या तिरस्कार कर सकता है क्या? तेरा प्रत्युत्तर शीघ्र मिलेगा न? जय वीतराग! भीवंडी, १ नवम्बर १९७५ - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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