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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१५५ हालांकि बातें तो पहले भी बहुत हुई हैं, तू उन बातों पर स्वस्थ मन से सोचे, तो तेरे मन का समाधान हो सकता है। ___ प्रिय मुमुक्षु! ज्यादा तो क्या लिखू? बुद्धिमान को ज्यादा लिखना नहीं चाहिए, ज्यादा उपदेश देना नहीं चाहिए, ज्यादा उपालंभ भी नहीं देना चाहिए | इतना भी जो तुझे लिखा है, वह तेरा पत्र पढ़ने से मेरे मन में जो व्यथा हुई, तेरे प्रति जो तीव्र सहानुभूति प्रकट हुई- इससे लिखा गया है। फिर भी, यदि मेरे इस पत्र से तेरे हृदय को दुःख हुआ हो- तो क्षमा चाहता हूँ।
५-५-७६ पालनपुर
- प्रियदर्शन
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