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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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लिया हर परिस्थिति को ! हर संयोग को ! धन्यवाद दिए बिना नहीं रह सकता,
प्रिय मुमुक्षु !
इस प्रकार तत्त्वज्ञान को जीवनोपयोगी बनाना चाहिए। मानसिक तनावों को, प्रश्नों को, समस्याओं को तत्त्वज्ञान से दूर किया जा सकता है। अभीअभी एक महाशय मिले थे, अच्छे तत्त्वज्ञानी थे, विद्वान थे और उपदेशक भी! उनसे मेरी बहुत बातें हुई । यों भी मेरे पुराने परिचित हैं वे। उन्होंने अपनी कुछ आन्तरिक बातें मुक्त मन से की, कुछ बातें अस्पष्ट और संदिग्ध भी कही। वे व्याकुल थे, कुछ चिन्ताओं से व्यग्र थे ... कुछ प्रतिकूल संयोगों में वे घिरे हुए थे। मैंने सहानुभूति से उनकी बातें सुनी ... । जो कुछ मुझे कहना था, मैंने कहा भी सही... बहुत थोड़ी बातें कही... ज़्यादा तो क्या कहूँ। वे स्वयं तत्त्वज्ञानी हैं!
मेरे मन में अनेक विचार आए । तत्त्वज्ञानी को प्रतिकूल संयोग ... प्रतिकूल परिस्थिति अशांत कर सकती है क्या? तो फिर तत्त्वज्ञान किसलिए ? पास में साबुन है... पानी है... फिर भी वस्त्र गंदे क्यों ? पास में भोजन हैं... पानी है फिर भी भूखे क्यों! प्यासे क्यों ? तत्त्वज्ञान को जीवनस्पर्शी बनाने की दृष्टि का अभाव! अपने प्रश्नों को तत्त्वज्ञान के माध्यम से सुलझाने की क्षमता का अभाव !
परमात्मश्रद्धा भी, यदि वास्तव में श्रद्धा है, तो मन का समाधान कर सकती है। मन की शांति-स्वस्थता को अखंड रख सकती है । चाहिए हार्दिक और वास्तविक श्रद्धा। मात्र मंदिर में जाने से ऐसी श्रद्धा नहीं आ जाती है। श्रद्धा का जन्म और श्रद्धा की वृद्धि मंदिर में हो सकती है, परंतु परमात्मा की सही पहचान के बिना न तो श्रद्धा का जन्म हो सकता है, न श्रद्धा की वृद्धि हो सकती है।
अपनी जैन परंपरा में एक कथाग्रंथ है, नाम है श्रीपाल कथा । प्राकृत भाषा में इसको ‘सिरिवाल कहा' कहते हैं। बहुत ही अच्छी कहानी है। इसमें मुख्य दो पात्र हैं, श्रीपाल और उसकी पत्नी मयनासुन्दरी । श्रीपाल राजकुमार था । मयना राजकुमारी थी। दोनों के जीवन संघर्षमय थे। कहानी तो बहुत बड़ी है, कभी तू आएगा मेरे पास, समय मिला तो कहूँगा ... । आज तो मैं यह बताना चाहता हूँ कि मयना सुन्दरी ने श्रद्धाबल और ज्ञानबल के सहारे, उसके जीवन में पैदा हुए गंभीर प्रश्न को हल कर दिया था जरा सी भी घबराहट के बिना, जरा सी भी दीनता किए बिना ! पिता- राजा ने अनजान और कुष्ठरोग से ग्रस्त युवाक के साथ मयना की शादी कर दी... फिर भी मयना के मन में कोई
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