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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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* तत्त्वदृष्टि से, ज्ञानदृष्टि से परिस्थितियों का मूल्यांकन करने से मन को समाधान मिल जाता है।
* तत्त्वज्ञान केवल किताब या दिमाग में भर कर रखने के लिए नहीं है, इसे जीवन के व्यवहार में उतारना चाहिए ।
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* परमात्मा की सही एवं सम्यक पहचान के बिना श्रद्धा पैदा कैसे होगी? श्रद्धा की वृद्धि कैसे होगी?
* परमात्मा पर की गई श्रद्धा भी यदि वास्तविक है... सम्यक है... तो वह श्रद्धा भी, अपने मन के प्रश्नों का समाधान कर सकती है।
प्रिय मुमुक्षु !
* कहानी भी यदि उसके हार्द को पहचानते हुए पढ़ी जाए तो अभिनव दृष्टिकोण मिल सकता है।
पत्र : ३४
धर्मलाभ,
तेरा पत्र हाथ में आया, अभी लिफाफा खोला भी नहीं था... और मन प्रसन्नता से पुलकित हो उठा । लिफाफा खोला... पत्र पढ़ता गया... जो-जो बातें पढ़ी, हृदय को स्पर्श कर गई। तूने जो मनःसमाधान पाया, जो आत्मपरितोष पाया, मेरे लिए परम संतोष का कारण बन गया ।
तेरा मन कितना हल्कापन महसूस करता होगा ! तेरी आत्मा कितनी शीतलता अनुभव करती होगी! हजारों टन वजन वाले तेरे प्रश्न- पहाड़ तेरे सर से उतर गए..!
मुझे विशेष प्रसन्नता तो इसलिए हो रही है कि तूने तत्त्वज्ञान के माध्यम से अपने मन को समझा दिया! परिस्थिति तो वही की वही है... संयोग वही का वही है... तूने तत्त्वदृष्टि से उन परिस्थितियों का ... उन संयोगों का मूल्यांकन किया और मन का समाधान हो गया । उत्तेजित मन प्रशांत हो गया । विह्वल चित्त शांत हो गया । उद्विग्न आत्मा उल्लासमय हो गई।
संयोग प्रतिकूल है, परिस्थिति भी प्रतिकूल है... परंतु तेरी दृष्टि में अब प्रतिकूलता का दर्शन नहीं है ! तूने सहजता से - स्वाभाविकता से स्वीकार कर
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