________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
१४१
: 'माँ, यह जानवर खा जाएगा..।' माँ हँसती है ! बच्चे के सर को सहलाती हुई कहती है : यह तो पर्दे का शेर है ... अपने पास नहीं आ सकता... सच्चा शेर नहीं है!
संध्या के समय क्षितिज पर अनेक रंग उभर आते हैं... अनेक प्रकार की आकृतियाँ दिखाई देती हैं। बड़ा नगर भी दिखाई देता है और अद्भुत कलरमेचिंग भी दिखाई देता है... परंतु थोड़े क्षणों के बाद अंधकार छा जाता है .... कोई आकृति नहीं रहती... कोई रंग नहीं रहता...। यह देखकर कभी तू निराशा में डूबा है? नहीं ना ? तो फिर इस समय क्यों निराशा के समंदर में डूब गया है ?
क्या तू इस संसार को वास्तविक मान रहा है ? इस संसार की घटनाओं को, परिवर्तनों को वास्तविक मान रहा है ? हाँ, तू वास्तविक मान रहा है, इसलिए तो रो रहा है। अज्ञान - अबोध बच्चे की तरह रो रहा है।
तू सच-सच बता, क्या तुझे संसार की घटनाएँ बच्चों के 'घर-घर' के खेल जैसी अवास्तविक लगती हैं ? क्या तुझे दुनिया की बातें सिनेमा के शेर की गर्जना जैसी असत् प्रतीत होती हैं ? क्या तुझे संसार के सारे सुख संध्याकालीन आकाश के रंग जैसे क्षणिक और जादूगर की माया जैसे काल्पनिक लगे हैं?
तेरे पास तत्त्वज्ञान है न? तूने कुछ धर्मग्रंथों का तो अध्ययन किया है न? धर्मगुरुओं का थोड़ा-सा उपदेश तो सुना है न? यानी तेरे पास थोड़ा-सा भी शास्त्रज्ञान है, यह मैं जानता हूँ । अब तुझे एक काम करना चाहिए ... तू शास्त्रज्ञान के माध्यम से 'ज्ञानदृष्टि' प्राप्त कर ले। उस ज्ञानदृष्टि से तू संसार का सम्यग्दर्शन कर सकेगा। ज्ञानदृष्टि से ही संसार का, संसार की हर घटना का, संसार की प्रत्येक व्यक्ति का, संसार की हर बात का तू सच्चा दर्शन कर सकेगा, वास्तविक दर्शन कर सकेगा।
संसार तुझे बच्चों के संसार तुझे संध्या के संसार तुझे सिनेमा के
मैं तुझे मात्र आश्वासन देने के लिए ये बातें नहीं लिख रहा हूँ। मैं यह चाह रहा हूँ कि तू अब सदा के लिए प्रसन्न बना रहे ! सर्वदा आनंदपूर्ण बना रहे । तू कभी विषादमग्न न हो, तू कभी वेदनाग्रस्त न हो। इसका एक ही उपाय है : संसार का सम्यग्दर्शन! ज्ञानदृष्टि से संसार का सच्चा दर्शन करना।
मिट्टी के घर के खेल जैसा लगेगा। रंगों जैसा लगेगा।
पर्दे के दृश्यों जैसा लगेगा ।
For Private And Personal Use Only