________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२४
जिंदगी इम्तिहान लेती है ● सूक्ष्मचिंतन की गहराइयों में बँगला और झोपड़ी, दोनों में ज़्यादा अंतर
प्रतीत नहीं होता है। दोनों का रुप मूलभूत रूप से एक सा लगता है। ● इस विश्व में सुंदरता, कुरूपता का उपहास करती नजर आती है। सुंदरता की
आँखों में कुरुपता के लिए तिरस्कार भरा भाव दिखाई देता है। ® संसार की सुख-सुविधाओं का त्याग करना सरल है, भोजन का त्याग
करना भी इतना मुश्किल नहीं है... जितना कि अपनी विशिष्टता का त्याग करना, अपने व्यक्तित्व को त्यागना। ® व्यक्तित्व का वैशिष्ट्य एक तरह की मोहजाल है और अन्तर्यात्रा में यह
मोहजाल बाधक बनती है। ॐ दुनिया अपनी विशिष्टता जाने या नहीं... इससे क्या फर्क पड़ता है? परमात्मा
तो जान ही रहे हैं।
पत्र : २८
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ, प्रत्युत्तर लिखने में असह्य विलम्ब हो ही गया! नाराज मत होना। कुछ शारीरिक, कुछ सामाजिक और कुछ आन्तरिक प्रतिकूलता ने दो महीने से कुछ लिखने ही नहीं दिया है। कुछ शारीरिक स्वस्थता पाने और कुछ मानसिक प्रसन्नता पाने, नगर के बाह्यप्रदेश में आया हूँ।
इधर हम एक बँगले में रह रहे हैं। यहाँ एकान्त है, समृद्धि है और चारों तरफ प्रसन्नता का वातावरण है। बँगले के बहुत पास, पक्की सड़क के किनारे उजड़े स्थान पर एक झोपड़ी है। प्रतिदिन उस झोपड़ी का दैन्य, दारिद्र्य और कष्ट साफ-साफ दिखता है। हालाँकि सूक्ष्मचिंतन के क्षेत्र में बँगले और झोपड़ी में बहुत अन्तर प्रतीत नहीं होता है। दोनों की सुन्दरता और कुरूपता मानों एक-दूसरे को समझ रही है। ___ अभी आकाश स्वच्छ है, निरभ्र है। कोई छोटा सा मेघ-शिशु भी आकाशपथ पर दिखाई नहीं देता है । वृक्ष निःस्तब्ध हैं | मन कुछ विशिष्ट चिंतन में डूब रहा है।
For Private And Personal Use Only