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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१२० ● जो मनुष्य निरपेक्ष प्रेम के तत्व को समझ नहीं पाता है, वह कभी भी
विश्वव्यापी चेतना के साथ तादात्म्य की अनुभूति नहीं कर पाता है। ® अपने को दु:ख देनेवालों के प्रति, अपना बिगाड़ने वालों के प्रति भी
तिरस्कार या दुर्भाव की भावना नहीं रखना है। ® अपराधी के अपराधों को भूलकर जब करुणा की परमपावनी गंगा मनुष्य
के हृदयगिरि से बहती है, तब वह गंगा से भी ज़्यादा पवित्र होती है। ® मोहदृष्टि से तो जीवों के प्रति अन्याय एवं अनाचार ही होगा। मोक्षमार्ग की
आराधना में ज्ञानदृष्टि अनिवार्य है। ® मोहदृष्टि से की गई धर्मआराधना, आराधना नहीं, अपितु विराधना बन
जाती है।
पत्र : २७
प्रिय गुमुक्षु,
धर्मलाभ, तू मेरे पत्र की प्रतीक्षा करते-करते अधीर बन गया होगा। कई दिनों से सोचता हूँ कि 'आज तो पत्र लिखना ही है, परंतु कोई न कोई विक्षेप आ ही जाता है! तेरी स्मृति बनी रहती है, चूंकि तू मेरी विस्मृति नहीं कर सकता है! कभी तू मेरी विस्मृति कर भी देगा, तो भी मेरे हृदय में तेरी स्मृति बनी ही रहेगी। तू मेरी बात नहीं मानेगा तो भी तेरे प्रति मेरे हृदय में स्नेह बना रहेगा। तू विश्वास करना, मेरी ओर से तेरे कोमल भावों को क्षति नहीं पहुंचेगी।
निरपेक्ष स्नेह, निरपेक्ष प्रेम विश्व में सर्वोपरि तत्त्व है। जो मनुष्य इस तत्त्व को नहीं पाता है, वह विश्वव्यापी चैतन्य के साथ तादात्म्य नहीं पा सकता है। सर्वात्मा के साथ एकत्व की मधुर अनुभूति नहीं कर सकता है। भावात्मक भूमिका पर जो जीवत्व के साथ एकत्व स्थापित नहीं कर सकता है, वह सिद्धशिला पर, द्रव्यात्मक भूमिका पर शुद्ध चैतन्य के साथ अभेद कैसे पा सकता है? मोक्ष पाने की बातें करने वाले लोग, 'हमें मोक्ष चाहिए', ऐसी बातें करने वाले लोग अपने जीवन में क्या जीवत्व के साथ प्रेम के माध्यम से, निरपेक्ष स्नेह के माध्यम से एकत्त्व स्थापित कर रहे हैं? नहीं, सापेक्ष प्रेम अथवा दुर्दान्त द्वेष करते हुए वे लोग मोक्ष की ओर नहीं, नर्क की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
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