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जिंदगी इम्तिहान लेती है
११२ ® जीवन की यात्रा में रास्ता हमेशा सीधा या एक सा नहीं रहता है... कभी टेढ़ा-मेढ़ा... कभी ऊबड़-खाबड़... भी रास्ता आता है... पर यात्रा को रोके बगैर गतिशील रहना है। ® अपने अच्छे एवं अद्भुत कार्यों की प्रसिद्धि का मोह भी खतरनाक है! 'अहं'
की आग इससे बढ़ती है... और 'अहं' की उपस्थिति में 'अहं' की उपासना शक्य नहीं है। ® शरीरशक्ति का तनिक भी अपव्यय साधक के लिए उचित नहीं है। शरीरशक्ति,
वचनशक्ति एवं विचारशक्ति का संग्रह करना चाहिए। ® साधना की राह में प्रतिपल जागृत रहकर आत्मा को प्रमाद से बचाना है। ® बाहरी त्याग, तप के साथ-साथ भीतरी अनासक्ति भी अति आवश्यक है।
पत्र : २६
प्रिय गुमुक्षु!
धर्मलाभ, मन की अक्षुण्ण प्रसन्नता जीवनयात्रा में सहचरी बन रही है। कभी जीवनपथ सीधा आता है... कभी टेढ़ा भी आता है! कहीं पर मोड़ भी आता है... परंतु यात्रा अबाधित गति से हो रही है। यात्री अपने गन्तव्य के प्रति प्रगति कर रहा हैं। इस जीवन यात्रा में कुछ सहयात्री अपना पथ बदल लेते हैं, तो कुछ नए यात्री साथी बन जाते हैं... यात्रा है न! बहुत लंबी यात्रा है। लंबी यात्रा में सब यात्री समान धैर्यवाले नहीं होते हैं। कुछ यात्री अधीर बन जाते हैं : 'इतना चलने पर भी अभी तक गाँव नहीं आया...? हम तो थक गए हैं... हमने गलत रास्ता ले लिया है... हमें आगे नहीं बढ़ना है... हम तो यहाँ ही रुक जाएँगे.. वापिस लौट जाएँगे..।' यात्रा में ऐसी ध्वनि अक्सर सुनाई देती है।
ऐसे अधीर यात्री अपनी यात्रा पूर्ण नहीं कर पाते।
डभोई से बड़ौदा होते हुए खंभात पहुंचे थे। खंभात गुजरात का ऐतिहासिक प्राचीन नगर है। 'स्तंभन पार्श्वनाथ' भगवंत की प्रभावशाली नयनरम्य प्रतिमा है। दर्शनीय जिनालय है। वैसे तो यहाँ करीबन ७० जिनमंदिर हैं और विशालकाय उपाश्रय है। दस वर्ष पूर्व इसी नगर में मेरे परम गुरुदेव श्री का स्वर्गवास हो गया था। उन महापुरुष का पुण्य नाम था आचार्यदेव श्री
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