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जिंदगी इम्तिहान लेती है
११० रूप से वैराग्य चाहिए | त्याग हो, परंतु वैराग्य नहीं हो तो त्याग भी पतन ही करवाता है। वैराग्यरहित त्याग से अभिमान ही बढ़ता है। अहंकार और तिरस्कार बढ़ता है। स्वयं के त्याग का अहंकार और दूसरों के प्रति तिरस्कार बढ़ता है। जीवन बुराइयों से भर जाता है। वैराग्यरहित त्यागी कभी-कभी देखने में आ जाते हैं... तो उनके जीवन में ये बातें प्रत्यक्ष रूप से पाई जाती हैं! उनका पतन होते भी देखा जाता है। ___ साधु जीवन का अर्थ ही है वैराग्य सहित त्यागमय जीवन! साधु जीवन का कर्तव्य भी वैराग्य भावना को पुष्ट करने का होता है। क्योंकि वैराग्य के विकास के साथ-साथ आत्मानंद की, ज्ञानानंद की, सच्चिदानंद की वृद्धि होती
वैराग्य के साथ-साथ उद्यमवीर्य और धृतिवीर्य चाहिए। वैसे, तीसरा धीरतावीर्य चाहिए | धीरतावीर्य का अर्थ है, अक्षोभ! दुःखों में, कष्टों में विक्षुब्धता नहीं। साधु जीवन को स्वीकार करने वाले यह समझकर ही स्वीकार करते हैं कि 'इस जीवन में मुझे जानबूझ कर दुःख एवं कष्टों को सहन करने हैं। दुःख सहन करने की क्षमता मेरे में होनी ही चाहिए।' ऐसा समझकर जो साधुसाध्वी बनते हैं, वे दुःख या कष्ट आने पर नाराज नहीं होते, प्रसन्न होते हैं! उनमें 'धीरतावीर्य' होता है। मन विक्षुब्ध नहीं बनता, प्रसन्न बनता है। 'वैराग्य' के साथ यदि यह 'धीरतावीर्य' हो तो वह भगवान महावीर की भाँति अक्षुब्धता के साथ कष्टों को सहन कर अपनी आत्मा को उज्ज्वल बना सकता है।
महान गृहस्थ ऐसे श्रावक-श्राविकाओं के जीवन में भी 'धीरतावीर्य' देखने को मिलता है! पूर्वकाल में श्रेष्ठि सुव्रत, श्रेष्ठि सुदर्शन, महासती सीता, अंजना, मनोरमा वगैरह के जीवन में यह 'धीरतावीर्य' था। तीव्र कोटि के कष्ट आने पर भी वे विचलित नहीं हुए थे, विक्षुब्ध नहीं बने थे। गृहस्थजीवन में 'धीरतावीर्य' का कुछ विकास हुआ हो और साधु जीवन को स्वीकार करें, तो उसका साधु जीवन विशेष सफल बनता है। अथवा साधु जीवन का स्वीकार इस दृढ़ संकल्प के साथ किया हो कि 'मुझे साधु जीवन में, कष्ट आने पर भी क्षुभित नहीं होना है, चंचलचित्त नहीं बनना है, कष्टों से दूर नहीं जाना है...' तो भी वह साधु जीवन का आनंद पा सकता है। समता सहित अविचल चित्त से कष्ट सहन करने की क्षमता 'धीरतावीर्य' है।
'श्री सूत्रकृतांगसूत्र' में ग्यारह प्रकार के वीर्य बताए हैं। शेष आठ प्रकार के वीर्य आगे के पत्र में लिगा । अब डभोई से विहार की तैयारियाँ चल रही हैं।
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