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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१०८ एक बात समझ लेना कि वैराग्य में नीरसता नहीं है। वैराग्य में रसप्रचुरता है। वैराग्य में शांति... अन्तःकरण की परम शांति है। ऐसी शांति और शांति के क्षणों में ही संयमजीवन की विशिष्ट आराधना हो सकती है। वैराग्य के साथ-साथ चाहिए साधना-आराधना का उत्साह और उमंग!
वैराग्य है, परंतु ज्ञानप्राप्ति का उत्साह न हो, तपश्चर्या करने का उल्लास न हो, आवश्यक धर्मानुष्ठानों का उमंग न हो, तो वैराग्य दीर्घकाल नहीं टिकेगा। क्षणजीवी बन जायेगा। भगवान महावीर स्वामी ने 'सूत्रकृतांग' सूत्र में यह बात संक्षेप में कह दी है। उन्होंने कहा है कि संयमजीवन में 'उद्यमवीर्य' होना चाहिए । 'उद्यमवीर्य' का अर्थ यही है, ज्ञान-तपश्चरण आदि में सतत उत्साह से प्रवृत्ति करना। ___ जब कभी कोई साधु या साध्वी कहते हैं कि 'हमें अध्ययन में मजा नहीं आता, धर्मग्रन्थों को पढ़ने में उत्साह नहीं बढ़ता' इत्यादि... तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। ज्ञान... अभिनव ज्ञान प्राप्त करने में, धार्मिक-आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में साधक का उत्साह-उमंग बढ़ता जाना चाहिए | तपश्चर्या एवं विविध धर्मानुष्ठान करने में हर्षोल्लास बढ़ता जाना चाहिए। वैराग्य को दीर्घजीवी बनाने के लिए, उद्यमवीर्य अनिवार्यरूप से होना चाहिए | मैंने ऐसे दो-चार युवक एवं तरुण को इसलिए दीक्षा नहीं दी, क्योंकि उनमें यह 'उद्यमवीर्य' मैंने नहीं देखा । वैराग्य हो जाने से संसार तो छोड़ देना सरल है, परंतु उद्यमवीर्य के अभाव में वैराग्य को स्थिर करना संभव नहीं है। साधु जीवन यानी साधक जीवन! साधना के जीवन में ज्ञानानंद ही बड़ा आनंद है। ज्ञानानंद नहीं होगा तो फिर मन विषयानंद प्राप्त करने को दौड़ेगा। साधक साधनापथ से गिर जाएगा।
वैराग्य के साथ जैसे 'उद्यमवीर्य' चाहिए वैसा दूसरा 'धृतिवीर्य' चाहिए। धृतिवीर्य का अर्थ होता है, चित्तसमाधान | संयममार्ग में स्थिरता! साधना के जीवन में भी प्रश्न तो पैदा होंगे ही। मन है ना! मन तर्क-वितर्क करता रहता है। आत्मा जागृत होती है तो उन तर्क-वितर्कों का समाधान करती रहती है। मन के तर्क वितर्कों का समाधान करना... पुनः-पुनः समाधान करना आवश्यक बन जाता है। जिनके पास आत्मज्ञान होता है, शास्त्रज्ञान होता है, वे अपने मन का समाधान स्वयं ही कर लेते हैं। मानसिक समाधान में ही स्थिरता, समता और प्रसन्नता बनी रहती है। मन के विकल्पों में ही अस्थिरता, विषमता और विकलता विकसित होती है। वैरागी को अपने मन का समाधान स्वयं ही
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