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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१०२ ® तत्त्वज्ञान के प्रकाश में अनेक मानसिक गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं... और _ फिर अपूर्व आनंद की भीतरी दुनिया आलोकित होने लगती है। ® सच्चे एवं समर्पित हृदय से की गई परमात्मा की प्रार्थना कभी निष्फल नहीं
जाती! @ परमात्मा की आज्ञा का समुचित पालन उनकी कृपा के सहारे ही शक्य
होता है। ® पाप औरों के नहीं वरन स्वयं के देखो... ताकि पश्चात्ताप का झरना फूट निकले भीतर में! दुःख देखना हो तो औरों के देखो ताकि करुणा की गंगा
बहती रहे अंत:करण में! ® संबंधों को बोझ मत बनने दो। ताल्लुकात यदि सख्त हो जाएंगे तो दिलदिमाग भी तंग रहेंगे। संबंधों को मुलायम रखो... पथरीले मत होने दो।
पत्र : २३
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प्रिय गुमुक्षु,
धर्मलाभ, तेरी कुशलता के समाचार मिले, प्रसन्नता हुई। मैं भी प्रसन्न हूँ| तू जानता है कि मुझ से तपश्चर्या नहीं होती है और अभी ‘योगोद्वहन' में मैं तपश्चर्या कर रहा हूँ, इसलिए तुझे चिन्ता होना स्वाभाविक है। परन्तु चिन्ता मत करना, किसी प्रकार की शारीरिक-मानसिक व्यथा के बिना और तन-मन की प्रफुल्लता के साथ तपश्चर्या हो रही है । 'योगोद्वहन' की विशिष्ट क्रियाएँ भी सुचारु रूप से हो रही हैं। __ प्रातःकाल, मध्याह्न और सायंकाल... प्रसन्नता के पुष्प खिलते रहते हैं। दीनता, उदासीनता... विकलता... मानो पलायन ही हो गए हैं! उस कवि ने कहा है न...
अवधू! सदा मगन में रहना! अभी मगनता है। ज्ञानमग्नता है। कुछ ऐसी गुत्थियाँ सुलझ रही है मन की, कुछ ऐसा तत्त्वप्रकाश प्राप्त हो रहा है... इस से अपूर्व आन्तर आनंद, अनुभव कर रहा हूँ। जिस तरह प्राकृतिक दृश्य सूरज की रोशनी के अनुसार
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