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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० जिंदगी इम्तिहान लेती है । यदि ऐसा चिन्तन-मनन चलता रहे... संसार की अर्थहीनता से हृदय परिचित हो जाये... तो परमात्मप्रीति का, परमात्मशक्ति का मार्ग सरल बन जाये! तू जानता है न कि क्षण-प्रतिक्षण संसार वेदनामय होता जा रहा है? अशांतिमय होता जा रहा है? पारिवारिक जीवन और सामाजिक जीवन कितना अस्त-व्यस्त एवं क्लेशपूर्ण बन रहा है? राष्ट्रीय जीवन और वैश्विक जीवन कितना भयानक बन रहा है? चारों ओर भय और त्रास का आतंक फैलता जा रहा है। इस परिस्थिति में शांति-समता का आस्वाद कहाँ से मिलेगा? परमात्म-समर्पण ही शांति-समता का आस्वाद करा सकता है। दूसरा कोई मार्ग नहीं है, दूसरा कोई उपाय नहीं है। परमात्मा के स्मरण, दर्शन, स्तवन, पूजन के साथ परमात्मा का ध्यान भी अत्यन्त आवश्यक है। 'ध्यानखंड' में परमात्मा से मिलन होता है। भावालोक में मिलन होता है। भले, अभी वह मिलन क्षणिक हो... विद्युत के चमक जैसी हो, परन्तु वह क्षण जीवन को, प्राण को... हृदय को आनंद से भर देता है। __ आजकल ध्यानमार्ग की अपने संघ में उपेक्षा हो रही है। ध्यानमार्ग की उपेक्षा का परिणाम है, चित्त की चंचलता और विक्षिप्तता। भले ही मनुष्य दर्शन-पूजन करे, तप-त्याग करे, शास्त्रों का अध्ययन करे, परंतु परमात्मध्यान नहीं करता है तो उसका मन शांत, प्रशांत नहीं बन सकता है। तुझे ज्ञान है कि कई ऐसे त्यागी-तपस्वी लोग भी शिकायत करते हैं कि 'हमारा मन स्थिर नहीं रहता, मन में शांति नहीं मिल रही...।' कई शास्त्रवेत्ताओं की मनःस्थिति भी ऐसी ही है। ध्यान कक्ष में वे पहुँचते ही नहीं! ध्यान कक्ष में ही परमात्मतत्त्व से मिलन होता है! ___ तू प्रतिदिन ध्यान कक्ष में जाना, थोड़ी क्षणों के लिए भी जाना! तू जा सकेगा, चूँकि तेरे प्राणों में परमात्म-चाह जगी हुई है। झूठे संसार के प्रति तेरी ज्ञानदृष्टि खुली हुई है। संसार के सुख तेरे पास भरपूर होने पर भी संसार के प्रति तेरे हृदय में कोई प्रबल आकर्षण नहीं है। इसलिए कहता हूँ कि तू ध्यान खंड में प्रवेश कर सकेगा और परमात्मा से तेरा सुखद मिलन हो जायेगा। दुनिया की भ्रमणाओं में उलझना मत | यदि जागृत नहीं रहा तो उलझने में देरी नहीं लगेगी। उलझते हुए कइयों को देखता हूँ। त्यागी-तपस्वी भी उलझ जाते हैं...! भ्रमणाओं में खो जाते हैं... तब हृदय सावधान हो जाता है... 'कहीं मैं न उलझ जाऊँ!' For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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