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प्रवचन-७८ सकता है। इसलिए, संयोग उत्तम मिलना चाहिए और संयोग को सफल बनाने का पुरुषार्थ होना चाहिए। पुरुषार्थ भी सही दिशा में होना चाहिए। उत्तम संयोग मिलने पर भी यदि बुद्धि कुंठित होती है अथवा मलिन होती है तो सही दिशा में पुरुषार्थ नहीं होता है। एक प्राचीन कहानी आती है : एक ब्राह्मण था, चक्रवर्ती राजा के दरबार में पहुँच गया। राजा ब्राह्मण पर खुश हो गया । राजा ने कहा : 'जो चाहे सो माँग लें।' ब्राह्मण ने कहा : 'महाराज, मुझे रोजाना एक समय की भोजन-सामग्री मिल जाय, वैसा प्रबन्ध करने की कृपा करें।'
होगा न जड़ बुद्धि का ब्राह्मण? संयोग मिला चक्रवर्ती राजा का, परन्तु माँगने का पुरुषार्थ सही दिशा में नहीं कर सका | पुरुषार्थ करने के लिए सूक्ष्म और गहरी सूझ-बूझ चाहिए। ज्ञानी की पहचान क्या? :
व्रतधारी के व्यक्तित्व को पहचानना पड़ेगा। ज्ञानगरिमा की पहचान होनी चाहिए। इतनी बुद्धि तो होनी ही चाहिए। केवल वेषधारी साधु तो बहुत मिल सकते हैं कि जो सही रूप में व्रतपालन नहीं करते हैं और जिनके पास विशिष्ट ज्ञान भी नहीं होता है। वे लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दुनिया के श्रीमन्तों की चापलूसी करते फिरते हैं। ___ व्रतधारी साधु अपनी व्रत-मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते हैं। आप लोगों को, साधु की व्रत-मर्यादाओं का ज्ञान होना चाहिए। है न ज्ञान? यदि ज्ञान नहीं होगा तो व्रतधारी को कैसे पहचान पायेंगे? __ ज्ञानी को पहचानने का ज्ञान है? 'यह साधु ज्ञानवृद्ध है या नहीं?' इसका निर्णय आप कैसे करेंगे?
सभा में से : जो महाराज अच्छा व्याख्यान देते हों, सबको पसन्द आ जाय वैसा प्रवचन देते हों, उनको हम लोग ज्ञानी कहते हैं।
महाराजश्री : 'ये साधु जिनवचनानुसार प्रवचन देते हैं या नहीं? इनके प्रतिपादन, निश्चय-व्यवहार की समतुला लिये हुए है या नहीं? उत्सर्ग और अपवाद को ध्यान में रखते हुए प्रवचन करते हैं या नहीं? प्रवचन में जिनागमसापेक्षता है या नहीं?' यह सब जिनके प्रवचन में हो, उस प्रवचन को आप लोग अच्छा प्रवचन कहते हो न? जो मोक्षमार्ग को हृदयंगम शैली में...बड़ी सरल भाषा में समझायें, उनको अच्छे वक्ता कहते हो न?
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