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प्रवचन-७८
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जिनाज्ञा सबसे बड़ी पहचान :
ज्ञानी को समझने के लिए, ज्ञानी को परखने के लिए भी ज्ञान चाहिए। आप लोग ज्ञानी हैं क्या? यदि नहीं हैं तो ज्ञानवृद्ध महापुरुष को कैसे जानेंगे? ज्ञानवृद्ध महापुरुष उनको कहा जाता है कि जिनके पास मोक्षमार्ग का यथार्थ बोध हो। जो निश्चय और व्यवहार नय को स्पष्टता से समझे हों और दूसरों को समझाने की क्षमता हो। जो, उत्सर्ग मार्ग और अपवाद मार्ग के ज्ञाता हों और दूसरों को समझा सकते हों। जो 'नयवाद' और 'स्याद्वाद' को स्पष्टता से समझे हुए हों और दूसरों को समझाने की क्षमता रखते हों। जो पर्षदा की योग्यता को परखकर उपदेश देनेवाले हों। ये ज्ञानवृद्ध महापुरुष कहलाते हैं। __ ऐसे महापुरुष का संयोग मिलने पर, उनकी सेवा सच्चे मन से कर लेनी चाहिए | मांडवगढ़ के महामंत्री पेथड़शाह ने आचार्यदेव श्री धर्मघोषसूरिजी की सेवा सच्चे मन से की थी, इसलिए तो उन्होंने धर्म-आराधना और धर्मप्रभावना - दोनों अद्भुत ढंग से की। पेथड़शाह की धर्म-प्रभावना :
गुरुदेव से सम्यक्त्व सहित, परिग्रह-परिमाण व्रत ग्रहण करने के बाद, कुछ वर्ष तो आर्थिक संकट में गुजरे, परन्तु मांडवगढ़ जाने के बाद क्रमशः उनका भाग्योदय होता चला। एक दिन वे महामंत्री के पद पर स्थापित हो गये। आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और राजकीय दृष्टि से तो उनकी महान् उन्नति हुई ही, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी उनकी भव्य उन्नति हुई। उन्होंने गुरुदेव श्री धर्मघोषसूरिजी का संपर्क बनाये रखा। वे उनकी सेवा-भक्ति करते रहे | गुरुदेव से निरन्तर प्रेरणा-दान उनको मिलता ही रहा। जिससे पेथड़शाह की धर्मभावना नवपल्लवित होती रही। उन्होंने कितने महान् सुकृत किये, आप लोग जानते हैं क्या? ०७६ नये जिन प्रासाद, भिन्न भिन्न गाँव-नगरों में बँधवाये ।
० प्रतिदिन, 'उपदेश माला' ग्रन्थ का एक-एक श्लोक कंठस्थ करते हुए, संपूर्ण ग्रन्थ कंठस्थ कर लिया याद कर लिया।
० सात लाख मनुष्यों को शत्रुजय-गिरनार तीर्थ की संघयात्रा करवायी। ० गिरनार तीर्थ, श्वेताम्बर जैन संघ का तीर्थ है' - ऐसा निर्णय करवाया। ० मांडवगढ़ के तीन सौ जिन मन्दिरों पर स्वर्ग-कलश स्थापित किये।
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