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प्रवचन-८२ ० हालाँकि मनुष्य के सभी अनुमान सही नहीं होते! पर हर म
परिस्थिति में कुछ न कुछ निर्णय तो उसे लेना ही होता है...समग्रतया सोचकर, अंदाजा लगाकर कार्य करने से एक
तरह का आत्मसंतोष तो जरूर मिलता ही है! ० पुरुषार्थ का रास्ता हमेशा सफलता तक नहीं पहुँचता! कभी
हारना भी पड़ता है...पर हार कर बैठे नहीं रहना है...कोशिश
चालू ही रखनी है! कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही! ० आत्मा को भुलाकर, परमात्मा को भुलाकर आज का आदमी
दुनियादारी में फँसता ही जा रहा है! रोजाना 'मैं कौन हूँ?' 6 __ इस प्रश्त को भीतर में उठने देना चाहिए। X० देखना ही है तो गिरे हुओं को नहीं पर गिरकर भी जो संभल = गये और आगे बढ़ते रहे, उन्हें देखो!
प्रवचन : ८२
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित "धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का निरूपण करते हुए सत्ताइसवाँ सामान्य धर्म बताते हैं बलाबल की अपेक्षा। इसका अर्थ होता है अपनी शक्ति-अशक्ति का विचार कर के कार्य करना।
बुद्धिमान् मनुष्य ही इस सामान्य धर्म का पालन कर सकता है। कोई भी कार्य करने की शक्ति-अशक्ति का विचार करना है न? मूर्ख मनुष्य जैसा विचार नहीं कर सकता है। शक्ति-अशक्ति का विचार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से करने का होता है। समय को जानिये!
चाहे धर्मपुरुषार्थ करना है, अर्थपुरुषार्थ करना है या कामपुरुषार्थ करना है...द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव का विचार करके करना चाहिए। कार्य की सफलता तभी प्राप्त होती है। द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव का विचार कैसे करना चाहिए-उसका मार्गदर्शन देते हुए टीकाकार आचार्यदेव कहते हैं -
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