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प्रवचन-८२
९७ कः कालः कानि मित्राणि को देश को व्ययागमौ।
कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यः मुहर्मुहुः ।। १. मैं कौन हूँ? (द्रव्य का विचार) २. मेरे मित्र कौन हैं? (द्रव्य का विचार) ३. आय-व्यय कैसा है? (द्रव्य का विचार) ४. देश कैसा है? (क्षेत्र का विचार) ५. समय कैसा है? (काल का विचार) ६. मेरी शक्ति कैसी है? (भाव का विचार)
इन छह बातों को लेकर चिन्तन-मनन करने का है। इस प्रकार चिन्तन करके कार्य करने का है। सोचो, पर ऐसे! :
अब एक-एक बात समझाता हूँ। पहली बात है - मैं कौन हूँ? यह विचार करना। ___'मैं घर का मुख्य व्यक्ति हूँ। मुझ पर घर की जिम्मेदारी है। मेरे माता-पिता हैं, मेरी पत्नी है, मेरे पुत्र है, मेरे भाई-बहन हैं - इन सबकी जिम्मेदारी मुझ पर है। दुःख में सहायक बनें वैसे मेरे कोई मित्र नहीं हैं। मेरी जितनी आय है उतना ही व्यय है। मुझे मेरी आय 'इन्कम' बढ़ानी चाहिए। मुझे कोई दूसरा भी व्यवसाय करना चाहिए । भविष्य में कोई विशेष खर्च करने का प्रसंग आ सकता है। ऐसा व्यवसाय ढूँढ़ना चाहिए कि जिसमें कभी नुकसान होने का संभव न हो। । इसमें तीन विचार आ गये | मैं कौन हूँ, मेरे मित्र कौन हैं और मेरी आय
और व्यय कैसा है। अब क्षेत्र का विचार करना है___ जिस गाँव में मैं रहता हूँ, वहाँ ऐसा व्यवसाय मुझे मिल सकता है क्या? यदि नहीं मिलता है तो दूसरे नगर में जाकर व्यवसाय कर सकता हूँ क्या? परिवार को यहाँ छोड़कर जाता हूँ तो परिवार की यहाँ सुरक्षा रहेगी क्या? __ अब समय का विचार करना है -
'परिवार को अकेला छोड़कर जाना उचित होगा क्या? समय अच्छा नहीं है। घर में लड़का है, लड़की है...कालेज में पढ़ते हैं...वातावरण अच्छा नहीं है। उनके जीवन में कोई व्यसन प्रविष्ट हो जाय तो बड़ा नुकसान हो सकता
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