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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ७३ आसपास से अनजान मत रहो : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिस गाँव-नगर में आप रहते हो वहाँ की परिस्थिति से आपको परिचित रहना चाहिए। आप अकेले हो या परिवार वाले हो, आप नौकरी करते हो या कोई धंधा करते हो, आपको नगर की परिस्थिति से वाकिफ रहना चाहिए । अब तो भारत में राजा-महाराजा रहे नहीं हैं अन्यथा वह भी देखना पड़ता था कि राजा कैसा है ? देश के विचार के साथ देश के अधिपति का विचार भी करना आवश्यक होता है । आज भले राजा नहीं हैं, परन्तु गाँव की पंचायत के लोग कैसे हैं, नगर है तो जिलाधीश कैसा है...! प्रजा का रक्षक है या भक्षक ? प्रजा का पालक है या शोषक ? किसी भी बात का स्वयं निर्णय करता है या किसी के कहे अनुसार निर्णय करता है ? नगर के अधिपति का मित्रमंडल...मंत्रीमंडल कैसा है...। नगर में प्रजा की सुरक्षा का कैसा प्रबन्ध है...? इत्यादि देखना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा कुछ नहीं देखते हैं वे छोटीबड़ी आफत में फँस जाते हैं। एक ऐतिहासिक घटना है । 'सुकृतसागर' नाम के ग्रन्थ में संग्रहित है : देदाशाह की दास्तान : मालव देश की 'नांदुरी' नगरी में 'देद' नाम का वणिक था । दरिद्रता ने उसको घेर लिया था। सर पर लोगों का कर्जा भी बहुत हो गया था। उसने अपना ‘काल' सोचा। 'मेरे दुर्भाग्य का यह समय है ...मुझे यहाँ नहीं रहना चाहिए। यहाँ मेरा बार-बार पराभव होता है...।' उसने नगर छोड़ दिया। वह दिशाशून्य होकर चलता रहा । ' हाँ मेरा भाग्य मुझे ले जायेगा वहाँ जाऊँगा.... ।' उसने एक जंगल में प्रवेश किया । जंगल में घूमते-घूमते उसने एक योगी पुरुष को, एक वृक्ष के नीचे बैठा देखा । योगी पद्मासनस्थ था । उसके दोनों कान में स्फटिक-रत्न के कुंडल थे। उसके पास स्वर्ण दंड था। सारे शरीर पर भस्म का विलेपन था। योगी को देखते ही देद वणिक का हृदय हर्षान्वित हो गया । प्रफुल्ल नेत्रों से उसने योगी को देखा । आकाश में मेघ को - बादलों को देखकर जैसे मयूर आनन्दित हो जाता है... वैसे देद वणिक आनन्दित हो गया ! एक ज्ञानी पुरुष ने कहा है : देवों का वरदान, सिद्ध पुरुषों का दर्शन, गुरुजनों का व राजा का सम्मान एवं नष्ट हुई संपत्ति की प्राप्ति, ये सब पुण्यकर्म के उदय से ही होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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