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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७३ देद वणिक धीरे-धीरे योगी के पास गया । योगी के सामने चुपचाप बैठ गया । योगी आँखें मूंदकर ध्यान में निमग्न था । वह योगी उस समय का महान् रसायनविद् 'नागार्जुन' था। हालाँकि देद वणिक नहीं जानता था कि 'यह नागार्जुन योगी है, परन्तु नागार्जुन की दिव्य प्रतिभा से वह प्रभावित हो गया। तीन दिन तक, बिना खाये-पिये वह योगी की सेवा करता रहा। सत्त्वशीलता की पहचान : ___ उसने समय को पहचाना। योगी के पास उसने भोजन की याचना नहीं की। भूख तो लगी ही थी, परन्तु वह जानता था कि 'नि:स्पृहता से सेवा करनेवालों पर योगी पुरुष प्रसन्न होते हैं और, सत्त्वशील पुरुष को ही वे कुछ प्रदान करते हैं।' महापुरुषों की कृपा के पात्र बनने के लिए तीन बातें चाहिए ही-निःस्पृहता, सेवा और सहनशीलता। देद वणिक चाहे दरिद्र था, परन्तु उसने अपनी मनोवृत्तियों पर संयम रखा। उसने तीन दिन तक कोई याचना नहीं की। अपनी दरिद्रता का रुदन नहीं किया । वह बस, योगी की सेवा ही करता रहा! भूख-प्यास को सहन करता रहा। ___ नागार्जुन के मन पर इन बातों का अच्छा प्रभाव पड़ा। वह देद पर प्रसन्न हुआ। उसने देद से पूछा : 'वत्स, तू भोजन क्यों नहीं करता है? और यहाँ क्यों आया है?' देद ने अपनी जो बात थी...बता दी। सच-सच बात कह दी। चूँकि वह जानता था कि 'महापुरुषों के सामने सत्य, प्रिय और हितकारी वचन ही बोलने चाहिए।' देद के सत्य और मधुर वचन सुनकर, नागार्जुन के हृदय में कृपा उभर आयी। नागार्जुन यौगिक शक्तियों का धनी था। उसने तत्काल योगशक्ति से, क्षीरान्न से भरा थाल, आकाश-मार्ग से मंगवाया और देद से कहा : 'भोजन कर ले।' आचारपालन की निष्ठा : देद ने दो हाथ जोड़कर विनम्र शब्दों में कहा : 'हे पूज्य, आपने यह भोजन किसी अनजान घर से मंगवाया है, इसलिए मैं यह भोजन नहीं कर सकता! चूँकि सत्पुरुष बड़े संकट में फँसा हो तो भी वह अपने आचार को त्याग नहीं सकता है।' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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