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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ● जहाँ आप रहते हो, जोते हो; वहाँ के वातावरण का, वहाँ के शासक का, लोगों का पूरा ख्याल करना चाहिए। सोचसमझकर कार्य करना चाहिए। अन्यथा अनचाही आफत का शिकार हो जाना पड़ता है। ● योगी पुरुष - सिद्ध पुरुषों को सेवा करते समय अपने स्वार्थ, अपने दुःख का विचार नहीं करना चाहिए । ● छोटी-छोटी मुश्किलों में और जरा जरा-सी बातों में प्रतिज्ञाएँ तोड़ देना बिल्कुल अनुचित है। ली हुई प्रतिज्ञा का पालन करना ही चाहिए। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● आज तो सबको धनवान होना है... चरित्रवान या गुणवान होने को कोई बात ही नहीं करता है! ● दूसरों को संपत्ति देखकर उसे छोनने को कोशिश मत करना... छोनकर, चोरी कर एकत्र को हुई संपत्ति आपके पास भी टिकेगी नहीं! कुछ भी करो... समय को पहचान कर, देश और समाज, लोग और आसपास को परिस्थिति का मूल्यांकन कर के करो, ताकि पछताने का मौका न आये। प्रवचन : ७३ परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए इक्कीसवाँ सामान्य धर्म बताते हैं 'अदेशकाल-चर्या का त्याग' | अदेश और अ-काल को जानना होगा । अ-देश यानी कु-देश | देश से यहाँ भारत से मतलब नहीं है, गुजरात या महाराष्ट्र से मतलब नहीं है ..... यहाँ मतलब है उस गाँव - नगर से कि जहाँ आपका निवास हो । जहाँ आप रहते हो...बसते हो। I वैसे, 'काल' से यहाँ उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल से मतलब नहीं है । चौथे या पाँचवें आरे से भी मतलब नहीं है, यहाँ मतलब है वर्तमान काल से । वर्तमान दिवस, वर्तमान महीना, वर्तमान वर्ष । For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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