________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-६३
१५४ गाँव-नगरों से हजारों तरूण वहाँ पढ़ने के लिए जाते थे। फल्गुरक्षित को अपने पास रखा और आर्यरक्षित को पाटलीपुत्र भेज दिया। ___ पाटलीपुत्र जाकर आर्यरक्षित ने विनयपूर्वक एकाग्रता से अध्ययन करना शुरू कर दिया। जिनके पास अध्ययन करना हो उनका विनय करना अनिवार्य होता है और अध्ययन में एकाग्रता होना आवश्यक होता है। जिस विद्यार्थी में ये दो गुण होते हैं वह त्वरित गति से ज्ञानार्जन कर सकता है। आज कितने विद्यार्थियों में ये दो गुण होंगे? किस में है विनय? किस में है एकाग्रता? अध्यापकों का उपहास करना सामान्य बात बन गई है। मन की चंचलताअस्थिरता सामान्य रोग हो गया है। शिक्षा का स्तर गिर रहा है।
आर्यरक्षित का तो व्यक्तित्व ही निराला था। वे शान्त-प्रशान्त थे और तीव्र मेधावी भी थे। वे विनम्र-विनयी थे, साथ-साथ ओजस्वी भी थे। वे जैसे अल्पभाषी थे वैसे अच्छे प्रवक्ता भी थे। उन्होंने थोड़े ही वर्षों में अपना अध्ययन पूरा कर लिया। विद्यागुरु का प्रेम संपादन कर लिया था, सहवर्ती छात्रों का स्नेह भी प्राप्त कर लिया था। वे वापस अपनी जन्मभूमि की ओर लौटे। उन्होंने अपने पिता को समाचार भेज दिये। सोमदेव ने राजा उदायन से विनती की : 'महाराजा, मेरा पुत्र आर्यरक्षित पाटलीपुत्र से अध्ययन कर वापस
आ रहा है। पाटलीपुत्र में उसने मेरी और आपकी शान बढ़ाई है। मैं चाहता हूँ कि उसका भव्य नगरप्रवेश करवाया जाय ।'
राजा उदायन पुरोहित की बात सुनकर प्रसन्न हुआ। राजा ने कहा : 'पुरोहितजी, आर्यरक्षित का स्वागत मैं करूँगा। वह मेरी राजसभा को शोभा प्रदान करेगा। उससे मेरी राजसभा की कीर्ति सारे भारत में फैलेगी....मुझे गर्व है कि मेरे पुरोहित का पुत्र बड़ा विद्वान पंडित बनकर आ रहा है।'
राजा भी कैसा गुणानुरागी था? कैसे प्रजावत्सल था! उनकी राजसभा में पंडितों का सम्मान होता था। उनकी राजसभा में प्रजा को न्याय मिलता था। ऐसे राजाओं के राज्य में प्रजा सुख-शान्ति पाती थी।
आज तो समय हो गया है, कल देखेंगे कि आर्यरक्षित का स्वागत राजा कैसा करता है और आर्यरक्षित माता-पिता का पूजन कैसा करता है!
आज बस, इतना ही।
For Private And Personal Use Only