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प्रवचन-६२
१५३ होनी चाहिए, चूंकि 'उपकार' इस विश्व का परम श्रेष्ठ तत्त्व है | जो जो हमारे उपकारी हों, उनकी यथोचित पूजा करनी चाहिए। पूजा की पद्धति में तारतम्य हो सकता है, परन्तु भाव तो कृतज्ञता का होना ही चाहिए | माता-पिता संतानो पर उपकार करते हैं, इसलिए वे पूजनीय बनते हैं। माता-पिता के सन्तानों के प्रति अनेकविध कर्तव्य : ___ मैं आज माता-पिताओं को इस दृष्टि से सावधान करता हूँ कि वे संतानों की दृष्टि में सदैव आदरपात्र बने रहें। संतानों का उनके प्रति प्रेम बना रहे....। संतानों के प्रति उनके जो जो नैतिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक कर्तव्य हैं; उन कर्तव्यों का समुचित पालन करते रहें। संतानों को बाल्यकाल से समुचित शिक्षा देना, महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है। शिक्षा देने का अर्थ इतना ही नहीं है कि किसी भी स्कूल में ‘एडमिट' कर दिया लड़के को और किताबें लाकर दे दो....बाद में....? लड़का जाने और उसकी माँ जाने! ऐसा नहीं चलेगा। बच्चे को स्कूल में एडमिट' करते समय स्कूल का वातावरण जानना चाहिए। पाठ्यक्रम देखना चाहिए। स्कूल का अनुशासन देखना चाहिए। __ बाल्यकाल में बच्चों में जो संस्कार पड़ेंगें उसका असर जीवनपर्यंत रहेगा। इसलिए बच्चों के प्रति माता-पिता को विशेष रूप से जाग्रत रहना चाहिए। इस देश में और इस काल में तो ज्यादा जागृति अपेक्षित है। स्कूलों में, विद्यालयों में....महाविद्यालयों में कि जहाँ सुसंस्कार मिलने चाहिए, वहाँ कुसंस्कार ही मिल रहे हैं। अनेक दूषण बढ़ रहे हैं। अनेक व्यसन बढ़ रहे हैं। इस बात को लेकर बहुत से प्रबुद्ध लोग चिंतित हो गये हैं। परन्तु इनको 'अब क्या करें?' 'सुधार कैसे करें?' कुछ समझ में नहीं आ रहा है। देश का तरुणधन और यौवन धन विनष्ट हो रहा है, इस बात की चिन्ता होना स्वाभाविक ही है। शिक्षापद्धति में आमूल परिवर्तन नहीं होगा तब तक कुछ भी सुधार होना संभव नहीं है। ऐसी परिस्थिति में बच्चों को संस्कारी बनाने होंगे तो माता-पिता ही कुछ कर सकते हैं। कुसंस्कारों से बच्चों को वे बचाना चाहें तो बचा सकते हैं। परन्तु माता-पिता को बच्चों के आत्महित की चिन्ता है कहाँ? विनय और एकाग्रता विद्यार्थी के लिए अनिवार्य गुण :
पुरोहित सोमदेव स्वयं अपने दो पुत्रों को अध्ययन करवाते हैं। जब उन्होंने अपना ज्ञान पूरा दे दिया तब आर्यरक्षित को पाटलीपुत्र नगर में पढ़ने के लिए भेजना चाहा। उस काल में पाटलीपुत्र महान् विद्याधाम था। भारत के अनेक
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