________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-३० है, उत्तम सेवा करता है। कालिकसरिजी भी उस पर प्रसन्न हुए। उसका नाम रखा विनयरत्न! विनय और सेवा जादू का काम करती है। विनय श्रेष्ठ जादू टोना है। विनयरत्न ने विनय से कालिकसूरिजी को खुश कर दिया। आचार्य का विश्वास भी संपादन कर लिया । आचार्य का विश्वास संपादन करना उसके लिए अत्यन्त जरूरी था। क्योंकि पर्वतिथि के दिन, जब राजा उदायी को पौषध व्रत करना होता था, आचार्य अपने विश्वासपात्र शिष्य को साथ लेकर राजमहल में जाते थे और रात्रि वहीं पर व्यतीत करते थे। राजमहल में राजा ने अपनी पौषधशाला बनायी थी, उसमें आचार्य भगवन्त स्थिरता करते थे और राजा पौषध व्रत धारण करता था। उदायी की हत्या कर दी :
बारह वर्ष व्यतीत हो गये इस तरह । एक दिन कालिकसूरिजी विनयरत्न को लेकर राजमहल में गये। विनयरत्न का मन नाचने लगा। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज उसकी योजना पूर्ण सफल होनेवाली थी। संध्या के समय राजा उदायी ने पौषध व्रत धारण कर लिया। पौषध व्रत में कोई भी शस्त्र पास में नहीं रखा जाता है। राजा संपूर्ण निःशस्त्र था। रात्रि के समय धर्मक्रियाएँ और धर्मध्यान कर राजा आचार्य के पास ही सो गया । आचार्यदेव भी निद्राधीन हो गये। विनयरत्न जगता है! हालाँकि सो जाने का अभिनय तो किया उसने, परन्तु वह सोया नहीं, नींद नहीं आयी उसको । कैसे आती नींद उसको? जिस दिन का, जिस समय का वह इन्तजार करता था, वह दिन, वह समय उसके सामने था! उसकी कल्पना में लाखों रूपयों का ढेर था! परिग्रह संज्ञा ने उसका गला दबोच लिया था। उसका हृदय अत्यंत क्रूर बना हुआ था। बारह साल से उदायी राजा की हत्या का विचार करता आया था।
वह धीरे से खड़ा हुआ । रजोहरण से छुरी बाहर निकाली। कमरे में अन्धेरा था। एकदम चुप्पी साधे वह राजा के पास पहुँचा। राजा के गले पर छुरी चला दी, हत्या कर दी.... और वहीं पर छुरी छोड़कर राजमहल से बाहर निकल गया, नगर छोड़कर, रात्रि के अन्धकार में अदृश्य हो गया।
उदायी राजा.... जो कि राजर्षि-अवस्था में था, उसकी निर्मम हत्या करके वह भाग गया। किसने करवाई यह घोर हत्या? परिग्रह संज्ञा ने! परिग्रह संज्ञा ने आचार्य के साथ वंचना करवाई, साधुता का दंभ करवाया, विश्वासघात का घोर पाप करवाया, राजा की हत्या करवाई....। ऐसी भयानक है परिग्रह की वासना ।
For Private And Personal Use Only