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प्रवचन- २९
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विपुल धनसंपत्ति में वह सुख का दर्शन करती थी । न्याय-अन्याय, नीतिअनीति के भेद उसे मंजूर नहीं थे । प्रमाणिकता से उसे लेना-देना नहीं था !
उस युवक ने अनीति का धन लेने की बात स्वीकार कर ली। वह अपनी ऑफिस में गया। एक व्यक्ति से उसने दो सौ रूपये की रिश्वत ले ली। रूपये जेब में डाल दिये। उसके मन में बहुत ही दुःख होता है । अशुभ की आशंका घेर लेती है उसे ।
रिश्वत ली और दूसरी मंजिल पर से बच्चा गिरा :
शाम को जब वह अपने घर पहुँचा, घर बंद था। पड़ौसी ने बताया कि 'आपका लड़का आज दोपहर को दूसरी मंजिल से जमीन पर गिर गया है, उसको लेकर आपकी पत्नी अस्पताल गई हुई है ।'
वह युवक वहाँ से सीधा अपनी सायकल पर हॉस्पीटल पहुँचा। अस्पताल के द्वार पर ही उसकी पत्नी खड़ी थी। जाते ही युवक ने पूछा : 'मुन्ने को कैसा है?' पत्नी रो पड़ी। रोते रोते उसने कहा : 'डॉक्टर ने बताया है कि मुन्ना भगवान की दया से ही बच सकता है, हमारे उपाय चालू हैं पर .......' किसने बचाया बच्चे को ?
युवक ने क्षणभर विचार कर लिया । पत्नी से कहा : 'तुम चिंता मत करो, यहाँ खड़ी रहो.... अथवा मुन्ने के पास चली जाओ, मैं अभी आता हूँ।' वह सायकल पर सवार हुआ और शहर में चल पड़ा। जिस व्यक्ति से उसने दो सौ रूपये की रिश्वत ली थी, उसके घर जाकर उसने दो सौ रूपये वापस दे दिये और एक क्षण का भी विलंब किये बिना वह अस्पताल पहुँच गया। उसके पहुँचते ही पत्नी ने कहा : 'अपना मुन्ना ठीक है, होश में आ गया है ।' युवक ने आँखें मूँद कर परमात्मा से क्षमा माँग ली। पत्नी कुछ समझी नहीं। डॉक्टर ने कह दिया, 'आप अपने मुन्ने को ले जा सकते हो, भगवान ने बचा लिया है उसको ।'
मुन्ने को लेकर पति-पत्नी अपने घर आये । भोजन के बाद पत्नी ने पूछा : ‘आप अस्पताल से वापस कहाँ गये थे?' युवक ने कहा : 'मुन्ने की दवाई लेने
गया था।'
'मुन्ने की दवाई ? कौन सी दवाई ? कहाँ है वह दवाई ?' पत्नी पति की बात का मर्म नहीं समझ रही थी । जब पति ने बतायी सारी बात .... तब पत्नी को
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