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प्रवचन-२९
हाँ, होती हैं, कुछ ऐसी महिलाएँ, जो अपने पतिदेवों को अन्याय अनीति से धनोपार्जन करने के लिए मजबूर करती हैं, परन्तु सभी महिलाएँ ऐसी नहीं होती हैं। दूसरी बात यह भी है कि यदि बुद्धिमान पत्नी जान ले कि 'मुझे मेरे पति को अन्याय-अनीति से धन कमाने देना नहीं है....' तो वह कर भी सकती है यह काम!
सभा में से : ऐसा कहती तो है वह परन्तु हम लोग मानते नहीं हैं। केवल वर्तमान जीवन के बारे में मत सोचो :
महाराजश्री : यदि वह विचक्षण है, बुद्धिमान है, तो अपना प्रयत्न छोड़ेगी नहीं। किसी भी उपाय से एक दिन आपको न्याय-नीति के मार्ग पर वह ले आयेगी। स्त्री में विशेष प्रकार की शक्ति होती है। पुरुष को वह देव बना सकती है और शैतान भी बना सकती है। परन्तु आजकल तो व्यसन और फैशन ने स्त्री और पुरुष.... सभी को कर्तव्यमार्ग से भ्रष्ट कर दिया है। विकार और वासना के परवश बने स्त्री-पुरुष अन्याय-अनीति और अप्रमाणिकता के गलत रास्ते पर चल पड़े हैं। किसी भी तरीके से धन चाहिए.....संपत्ति चाहिए | यदि हमारे पास ढेर सारे रूपये होंगे तो हम बंगला बना सकेंगे, कार खरीद सकेंगे क्लबों में जा सकेंगे....हमारी सामाजिक 'पोजिशन' बढ़ जायेगी... समाज में हमारी गिनती होगी... हमें अच्छे घराने की लड़की मिलेगी, लड़का मिलेगा। ऐसा ही सोचते हो न? मात्र वर्तमान क्षणिक जीवन का ही विचार करते हो। यह सुयोग्य विचार नहीं। पुख्त विचार नहीं! पारलौकिक विचार तो आता ही नहीं होगा कि 'आगामी भव में मेरा जन्म कहाँ होगा? वहाँ मुझे कौनसे दुःख मिलेंगे?' ऐसे विचार तो नहीं सही, वर्तमान जीवन को भी सुखी बनाने का सच्चा विचार नहीं आता है! अन्याय से, अनीति से कमाया हुआ धन वर्तमान जीवन को भी दुःखी कर देता है। न्याय-नीति की बातें बचकानी लगती हैं!
उस युवक ने अपनी पत्नी को समझाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु वह नहीं मानी। मानती भी कैसे? उसकी नजर में श्रीमंताई थी.... उसको तो हजारों रूपये चाहिए। यदि पति बेईमानी से कमा सकता है बहुत धन, तो उसको कमाना ही चाहिए। आजकल कौन बेईमानी नहीं करता है? न्यायनीति की पूँछ पकड़कर जीने से तो कभी भी हमारा 'लिविंग स्टान्डर्ड' ऊँचा नहीं उठ सकता.....गरीबी में ही सड़ते रहो। यह थी उस स्त्री की विचारधारा ।
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