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प्रवचन-२९
५१ म. अन्याय और अनीति से इकट्ठे किये हुए पैसे आपको सुख से'
जीने नहीं देंगे। आपको वे चैन की नींद सोने नहीं देंगे? लाखों रुपये की संपत्ति के बीच भी बेचैनी आपका पीछा नहीं छोड़ेगी। अशांति की आग में रात-दिन आपको जलना पड़ेगा। स्त्री में एक विशेष प्रकार की शक्ति रही हुई है। इसलिए तो उसे 'शक्तिरूपा' कहा जाता है। वह चाहे तो अपने पुरुष को परमात्मा भी बना दे...और चाहे तो शैतान से भी नीचे उतार दे। आज तो राष्ट्र की अर्थव्यवस्था ही इतनी उलझन भरी और परेशानी भरी हो गई है कि प्रजा तो तौबा कर चुकी है। रोजरोज नये-नये कर डालना और प्रजा को चूसना यही जैसे सरकार का मुख्य काम रह गया है। इसलिए करचोरी या टैक्स की चोरी को लोग पाप मानते ही नहीं हैं।
प्रवचन : २९
महान् श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रंथ में गृहस्थ का सामान्य धर्म बता रहे हैं | गृहस्थजीवन की तमाम क्रियाएँ न्यायोचित होनी चाहिए, यह बात ग्रन्थकार ने बड़े विस्तार से बतायी है।
गृहस्थजीवन की आधारशिला है अर्थ-सम्पत्ति । हर गृहस्थ को अपने जीवननिर्वाह हेतु अर्थोपार्जन करना ही पड़ता है। इसलिए अर्थोपार्जन का पुरुषार्थ गृहस्थजीवन का एक अनिवार्य पुरुषार्थ मानना ही पड़ेगा। परन्तु इस पुरुषार्थ की दिशा यदि गलत है, अन्याय, अनीति, जालसाजी, प्रपंच, बेईमानी.......से यदि यह अर्थपुरुषार्थ किया जाता है, धनवान् बनने की वासना से यदि अर्थपुरूषार्थ किया जाता है तो यह पुरुषार्थ पापमय बन जाएगा। यह पुरुषार्थ दुःखदायी बन जायेगा।
अन्याय-अनीति-बेईमानी से मान लो कि आपने रूपये कमा लिये, ढेर सारे रूपये कमा लिए, परन्तु वे रूपये आपको शान्ति से जीने नहीं देंगे! शान्ति से सोने नहीं देंगे! आपके पास लाखों-करोड़ों रूपये होने पर भी आप सुख नहीं पायेंगे।
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