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प्रवचन-२८
महाराजश्री : लड़के की अच्छी बात भी आप लोगों को पसंद नहीं आती है क्या? नहीं आती है, यदि वह आपको रूपये कमाने से रोकता है! धंधे में दखल देता है! यदि मैं आपको दो नंबर के धंधे नहीं करने का आग्रह करूं तो मेरे प्रति भी गुस्सा आ जायेगा न?
सभा में से : आप इतना कहते हो तो भी आपके प्रति गुस्सा नहीं आता है!
महाराजश्री : चूंकि मैं आप में से किसी को व्यक्तिगत ऐसा आग्रह नहीं करता हूँ | यदि व्यक्तिगत कह दूँ कि 'आप जैसे भक्त को ऐसा बुरा काम करना शोभा नहीं देता है, ऐसा धंधा करने से घोर पाप लगता है.... आत्मा दुर्गति में चली जाती है....' तो शायद दूसरे दिन आप मेरे उपाश्रय में आयेंगे ही नहीं। आपके स्वार्थ में बाधक अच्छी बात भी आप नहीं स्वीकारेंगे। हालांकि लक्ष्मीदास के लड़के ने लक्ष्मीदास को बेईमानी नहीं करने की सलाह नहीं दी थी, परन्तु लड़का उतना बुद्धिमान ही नहीं था कि वह बेईमानी कर सके! बेईमानी करने में बुद्धि तो चाहिए न? बुद्धिमान लोग ही ज्यादातर बेईमान होते हैं! भय वहाँ अशांति : भय वहाँ दुःख :
अन्याय, अनीति, अप्रमाणिकता.... बेईमानी करके लक्ष्मीदास ने दो लाख रूपये जोड़ लिये थे। परन्तु वह सदैव चिंताग्रस्त रहता था, भयभीत रहता था । उसको चोरों का भय सताता था डाकुओं का भय सताता था जहाँ भय वहाँ अशांति! जहाँ भय वहाँ दुःख! लोग भी जान गये थे कि लक्ष्मीदास ने बेईमानी से लाखों रूपये इकट्ठे किये हैं। लोगों की निगाह में लक्ष्मीदास का नैतिक चरित्र गिर गया था । सज्जन पुरुषों में लक्ष्मीदास की गिनती नहीं होती थी।
सभा में से : इस जमाने में धनवान् को ही सज्जन माना जाता है! नैतिक या धार्मिक स्तर देखा ही नहीं जाता है! समाज में और संघ में भी धनवानों की ही प्रतिष्ठा हो रही है! क्या होने जा रहा है आजकल! ___ महाराजश्री : क्या यह ठीक हो रहा है? बेईमान श्रीमंतों को दुराचारी श्रीमंतों को, धर्महीन श्रीमंतों को प्रतिष्ठा देकर, इज्जत देकर क्या संघ और समाज अच्छा काम कर रहा है? संघ और समाज में नैतिक मूल्यों का नाश हो रहा है। जो बात ज्यादा लोग करते हैं.... वह बात महत्व नहीं रखती है।
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