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प्रवचन-२८ कामना! यह वासना ही मनुष्य को अशुद्ध व्यवहार में प्रेरित करती है! धनवान् बनने की तीव्र आकांक्षा पुण्यपाप के सिद्धान्तों को भुला देती है। 'मेरा पुण्यकर्म का उदय होगा, तो ही मैं धनवान बन सकूँगा, यह सिद्धान्त भूल जाता है वासनाग्रस्त मनुष्य | 'मेरे पापकर्मों का उदय होगा तो मैं निर्धन ही बना रहूँगा,' यह सिद्धान्त विस्मृत हो जाता है धनवान बनने की तमन्नावालों के हृदय में। इसलिए ऐसे लोग अर्थोपार्जन में न्याय-अन्याय, नीति-अनीति, शुद्धि-अशुद्धि का भेद भूल कर पैसा कमाने का भरसक प्रयत्न करते रहते हैं। इससे न तो वर्तमान जीवन सुखमय बनता है, न पारलौकिक जीवन सुखमय बनता है। इस जीवन में भी दुःख और आनेवाले जीवन में भी दुःख, उभय जीवन दुःखमय बन जाते हैं। यदि आप लोगों को उभय जीवन बरबाद नहीं करना है, तो अन्याय का मार्ग छोड़ दो।। धंधे में होशियार : लक्ष्मीदास सेठ :
एक छोटा सा शहर था। उस शहर में लक्ष्मीदास की सोने-चांदी की दुकान थी। बड़ा बेईमान सेठ था। पूर्व जन्मों का उपार्जित पुण्यकर्म उसके पास था, परन्तु बुद्धि अशुद्ध थी। बेईमानी करने पर भी उसको काफी धन मिला था। पुण्यकर्म का उदय होने से ऐसा बनता है। परन्तु वह पुण्यकर्म जीवनभर नहीं टिकता है। ज्यों पुण्यकर्म समाप्त हुआ कि सारा का सारा धन चला जाता है।
लक्ष्मीदास को एक ही पुत्र था। भला-भोला लड़का था। पिता की तरह वह बेईमानी नहीं कर सकता था। लक्ष्मीदास को इस बात का दुःख था कि उसका लड़का अच्छी तरह बेईमानी नहीं कर पाता था! बेटे की अच्छी बात प्यारी लगती है? : ___ आप लोगों को ऐसा नहीं होता होगा? मान लें कि आप दो नंबर का धंधा करते हैं, आपने अपने लड़के को भी वैसा धंधा करने को कहा, परन्तु लड़के ने इनकार कर दिया.... इतना ही नहीं, उसने आपसे कहा : 'पिताजी, आप ऐसा धंधा नहीं करें, आप परमात्मा के मंदिर जाते हैं, सद्गुरु के चरणों में जाते हो, धर्मक्रियाएँ करते हो... आप छोड़ दो यह दो नंबर का धंधा....!' आप लड़के की बात सुनकर नाराज नहीं होंगे न?
सभा में से : नाराज ही नहीं, गुस्सा भी आ जाए!
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