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प्रवचन-३३
___ १०४ 'तो जाने दो उसको! हम लोग तो कोई भी नाटक कर सकते हैं।'
'लेकिन अभी वह चला जायेगा तो हमारा काम बिगड़ जायेगा। गाँव में पाँच-पचीस शादियाँ हैं, सारे कपड़े उसको सीने के लिये दिये हैं।' 'तो क्या करना है आपको? दरजी को वापस लाना है?'
'हाँ, वापस लाना ही होगा, हम लोग जाकर उसको मनाते हैं।' गाँव का मुखिया ४-५ दूसरे लोगों को लेकर दरजी के घर पर पहुँचा। दरजी और उसकी पत्नी तो बैलगाड़ी में बैठ गये थे और चलने की तैयारी थी.... ____ मुखिया ने दरजी से कहा : 'भाई, ऐसे तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए | तुम मत जाओ, तुम्हारे जाने से हमारा काम बिगड़ जायेगा।'
'नहीं, मैं तो जाऊँगा ही! तुम लोग मेरा नाटक देखो और हँसते रहो! मुझे अब इस गाँव में नहीं रहना है।' मुखिया ने बहुत समझाया परन्तु दरजी नहीं माना और उसने अपनी गाड़ी चला दी। मुखिया वगैरह नट के पास पहुंचे और कहा : 'वह तो जा रहा है, हमने बहुत समझाया परन्तु माना नहीं।' नट ने कहा : 'आप लोग कहें तो मैं जा कर वापस ला सकता हूँ! मुझे बताओ कि वह गाँव के किस दरवाजे से निकलेगा?'
गाँव के लोगों ने रास्ता बताया, दरवाजा बताया । नट तुरंत ही निकल पड़ा और उस दरवाजे के पास आकर खड़ा रहा। थोड़ी देर में दरजी की बैलगाड़ी वहाँ आ गई। दरवाजे में ज्यों ही बैलगाड़ी आई। नट सामने आकर खड़ा रह गया। दरजी ने पूछा : 'कौन है? रास्ते से हट जाओ।' __ नट ने कहा : 'यह तो मैं हूँ....तुम्हारा नाटक करनेवाला! मैंने सुबह ही कहा था न कि मैं तुझे गाँव से निकाल दूंगा! निकाला न?' गाड़ी के पास जाकर नट ने चुटकी लेते हुए कहा । दरजी गुस्से में आ गया और बोला : 'तू कौन होता है मुझे गाँव में से निकालनेवाला?' अपनी पत्नी को कहा : 'चलो वापस, नहीं जाना है अपन को दूसरे गाँव, यह कौन होता है अपन को निकालनेवाला? चलो घर, वापस चलें।'
दरजी ने बैलगाड़ी को वापस लिया और शीघ्रता से घर की ओर चला। नट जोर-जोर से हँसने लगा। ऐसा ही है मोहनीय-कर्म :
नट ने दरजी को कैसा नचाया? कैसा मूर्ख बनाया? वैसे मोहनीय-कर्म
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