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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३३ १०३ कर्म लेकर जनमते हैं? सब के अपने-अपने पुण्यकर्म और पापकर्म हैं। आप भूल जायें कि आप ही सब के सुखदाता हैं! आप भूल जायें कि आप ही सब का सहारा हो! मान लो कि कल आप परलोक के यात्री बन गये तो क्या परिवार पर आसमान गिर जायेगा? आपके पीछे सारा परिवार जलसमाधि ले लेगा? दरजी मानता है कि 'यदि मैं चला जाऊँ इस गाँव से तो गाँव के सभी लोग नंगे हो जायेंगे! उनको कौन कपड़े सी कर देगा?' है न घोर अज्ञानता? वह गाँव से चला जायेगा तो दुनिया में दूसरा दरजी नहीं मिलेगा क्या? वह नट अपने स्थान पर पहुँचा और उसने अपने साथियों से कहा : 'आज रात को अपन रामलीला नहीं करेंगे परन्तु दरजीलीला करेंगे!' उसने दरजी के घर को, उसकी पत्नी को, उसके बच्चों को - सबको देख लिया था...। पास वाले गाँव में जाकर दरजी की कैंची वगैरह सामान ले आया। रात को रामलीला देखने सारा गाँव इकट्ठा हो गया। वह दरजी भी अपने परिवार के साथ रामलीला देखने आ गया था। स्टेज का परदा उठा और मंगलाचरण शुरू हुआ। मंगलाचरण पूरा होते ही दरजीलीला का प्रारंभ हो गया । एक तरफ से दरजी स्टेज पर आया और दूसरी तरफ से दरजी की पत्नी आयी। संवाद शुरू हो गया। लोगों को तो मज़ा आ गया! गाँव के दरजी जैसा ही अभिनय हो रहा था । दरजी की पत्नी का अभिनय भी वैसा ही बढ़िया हो रहा था! लोग तो पेट पकड़कर हँसने लगे! कुछ लोग तो गाँव का दरजी जहाँ बैठा था उसकी ओर देखकर हँसने लगे! दरजी की पत्नी दरजी के पास ही बैठी थी, उसने दरजी से कहा : 'क्या देखते हो? अपनी लीला हो रही है.... लोग अपनी ओर देखकर हँस रहे हैं। चलो उठो, अपन को नहीं रहना है इस गाँव में...।' __ दरजी अपनी पत्नी के साथ उठकर घर पर आ गया। बैलगाड़ी में सामान भरने लगा और गाँव छोड़कर जाने की तैयारी करने लगा। लोगों को बात मालूम हो गई। लोगों में आपस में कानाफुसी शुरू हो गई.... उधर उस नट को खयाल आ गया कि कुछ बात जरूर बनी है। उसने गाँव के मुखिया को पूछा : 'क्यों भाई, नाटक देखने आये हो या बातें करने?' । ___ मुखिया ने कहा : 'तुमने यह दरजीलीला का खेल किया और हमारा दरजी रूठ गया... गाँव छोड़कर जा रहा है।' For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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