________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन- ५
६८
'भगवन्, मुझे वैकुंठ के विषय में दो-तीन प्रश्न पूछने हैं। कभी से पूछना था, परन्तु शर्म का मारा नहीं पूछ सका...'
'पूछ लो, जल्दी पूछ लो ।' नारदजी ने प्रश्न पूछने की इजाजत दी।
‘देवर्षि, आप बुरा मत मानना, मैं यह पूछता हूँ कि आप जिस वैकुंठ की बात करते हैं, क्या उस वैकुंठ में ऐसी गटर मिलेगी ? दूसरी बात यह है कि वहाँ ऐसा परिवार मिलेगा? अथवा मेरे इस परिवार के साथ मैं वहाँ आ सकता हूँ?' सेठजी के प्रश्न ? ठीक है न उनके प्रश्न ? नारदजी तो स्तब्ध रह गये सेठजी के प्रश्न सुनकर। उन्होंने कहा :
'सेठजी, यदि आपको यह गटर ही पसंद है और यह परिवार ही प्रिय है, तो वैकुंठ में आने की जरूरत क्या है ? आपको आपकी गटर मुबारक हो ! बस, मैं जाता हूँ...।'
नारदजी तुरन्त ही वहाँ से चल दिये । विमान में बैठकर रवाना हो गये । बस, उसके बाद नारदजी वापस नहीं आये ! आये क्या कभी देखा किसी ने ? क्यों आये अब?
सभा में से आप पधारे हो न !
महाराजश्री : अच्छा, तो आप इस कथा का उपनय समझ गये ? भले ही यह कथा काल्पनिक हो, परन्तु कितनी मार्मिक है? कितनी उद्बोधक है ? बाहर से धर्मक्रिया करते हैं इसलिए हम मोक्षाभिलाषी हैं - ऐसा मान लेना कितना खतरनाक है?
समझते हो न? धर्म सब कुछ देता है, मोक्ष भी देता है, परन्तु हम यदि मोक्ष पाना चाहते ही नहीं, तो धर्म मोक्ष कैसे देगा ? जिस भावना से आप धर्म के पास जाओगे, धर्म आपकी भावना पूर्ण करेगा। यह बात निश्चित है। पुण्यकर्म के माध्यम से धर्म धन देता है, भोगसुख देता है, स्वर्ग देता है। कर्मक्षय के माध्यम से धर्म मोक्ष देता है ।
जन्म है वहाँ तक दुःख ही दुःख है !
जिस धर्म-आराधना से पुण्यकर्म बंधते हैं, वह धर्म - आराधना और कर्मक्षय जिस धर्म-आराधना से होता है वह धर्म-आराधना, दोनों भिन्न हैं। आगे बताऊँगा। आज तो अपने इस बात का विचार कर रहे हैं कि धर्म का प्रभाव कितना महान है? कितना अद्भुत है? कितना व्यापक है ? सोचना पड़ेगा,
For Private And Personal Use Only