________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-२०
२६८ उनकी तपश्चर्या और उनके शुभ भाव देखकर हृदय में प्रीति होनी चाहिए | उनके प्रति हृदय में सद्भाव बढ़ना चाहिए। ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए! जैसे, आपके किसी साधर्मिक भाई ने अच्छा दान दिया, लाख-दो लाख रूपये दान में दे दिये, समाज ने अथवा नगर के लोगों ने उसका अभिवादन किया, वह देखकर आप खुश होते हो न? उसके दानधर्म की अनुमोदना करते हो न? नहीं रे नहीं! अनुमोदना करोगे आप अपने साधर्मिक की? तब तो यहाँ से 'डायरेक्ट' सीधे सिद्धशिला पर-मोक्ष में पहुँच जाओगे! आप तो बोलोगे कि 'देखा देखा बड़ा दानेश्वरी । हम जानते हैं उसके दुश्चरित्र । एक तरफ तो कैसे बुरे काम करता है और दूसरी तरफ दान देता है! चाल है उसकी... अपने बुरे काम ढकने के लिए दान देता है।' दोषदृष्टि बुराई करवाती है :
यह दोषदृष्टि है | गृहस्थ है, संसार के अनेक पापों में फँसा हुआ जीव है। बुराइयाँ तो हैं ही... जितनी बुराइयाँ आप संसारी जीव में, छद्मस्थ जीव में देखना चाहो देख सकते हो। इसमें कोई विशेषता नहीं है। बुराइयों से भरे हुए जीवात्मा में आप कोई अच्छाई देखो, तो उसमें विशेषता है। किसी गृहस्थ ने अच्छी मासक्षमण जैसी तपश्चर्या की और गुणानुरागी लोगों ने उसको बहुतसी भेंट दी, यह देखकर आपके हृदय में उस तपस्वी गृहस्थ के प्रति प्रेम होगा? स्नेह उभरेगा? नहीं! आप तो बोलोगे : 'किया बड़ा तप इसने | जानते हैं इसके सारे कारनामे | तप किया किसलिए? जानते हो ढेर सारे रूपये इकट्ठे करने के लिए | अच्छी-अच्छी भेंट पाने के लिए।' ___ पाप में फँसे हुए भी कई मनुष्य अपने हृदय में अच्छी भावनाएँ भाते हैं, पापों से मुक्त होने की कामना करते हैं, उस भावधर्म की अनुमोदना करनी चाहिए। साध्वीजी भी अनुमोदना का पात्र :
वैसे, जो साध्वीजी हैं, जो प्रतिदिन ज्ञान-ध्यान में लीन रहती हैं, सम्यकदर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यकचारित्र्य से जिनकी बुद्धि निर्मल बनी है, जो अपने पाँचों महाव्रतों की अच्छी पालना करती हैं, उनके प्रति भी प्रमोदभाव होना चाहिए | किन्हीं दो-चार साध्वीजी का अविवेकी आचरण देखकर सभी साध्वीजी के ऊपर दोषारोपण नहीं करना चाहिए | जो साध्वी साधनासभर है, ज्ञानध्यान में तल्लीन रहती है, अपने गुरुजनों की सेवा-भक्ति करने में तत्पर रहती हैं,
For Private And Personal Use Only